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________________ . .श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला .. (१८). मतानुज्ञा अपने पक्ष में दोष स्वीकार करके परपक्ष में भी वही दोष बतलानामतानुज्ञा है, जैसे-यह कहना कियादे हमारे पक्ष में यह दोष है-तो आपके पक्ष में भी है। - . .(१६)न्यून-~अनुमान के लिए प्रतिज्ञा आदि.जितने अङ्गों का प्रयोग करना आवश्यक है उससे कम अङ्ग प्रयोग करना न्यून है। • (२०) अधिक--एक हेतु से साध्य की सिद्धि हो जाने पर भी अधिक हेतु तथा दृष्टान्तों का प्रयोग करना अधिक है.। , (२१) अपसिद्धा-त-स्वीकृत सिद्धान्त के विरुद्ध वात कहना अपसिद्धान्त है। . • (२२) हेत्वाभास-असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक आदि दोपों वाले हेतु का प्रयोग करना हेत्वाभास निग्रहस्थान है। (न्याय सूत्र अ० ५. श्रा० २) (प्रमाणमीमांसा अ २ श्रा० १ ० ३४) (न्यायमदीप) तेईसवां बोल संग्रह .६२२-भगवान् महावीर स्वामी की चर्या ... विषयक गाथाएं तेईस । . आचागंग सूत्र के नवें अध्ययन का नाम उप्रधान श्रुत है । उस में भगवान महावीर के विहार तथा चर्या का वर्णन है। उसके प्रथम उद्देश में तेईस गाथाएं हैं, जिनका भावार्थ नीचे लिखे अनुसार है (१) सुधर्मास्वामी, जम्बूस्वामी से कहते हैं-हे जम्ब ! मैंने -जैसा सुना है वैसा ही कहता हूँ। श्रमण भगवान् महावीर ने हेम त ऋतु में दीक्षा-लेकर तत्काल विहार कर दिया। .. (२) दीक्षा लेते समय इन्द्र ने भगवान् को देवष्य नाम का वन दिया था, किन्तु भगवान् ने यह कभी नहीं सोचा कि मैं इसे
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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