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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग १५५ A • - इसके सिवाय स्वयं गणधरों ने सामान्य लोगों की सूत्रों तक पहुँच हो एवं उनका अधिकाधिक विस्तार हो इसलिये, उस समय की लोक भाषा (अर्द्धमागधी) में इनकी रचना की। फिर श्रावकों के लिये सूत्र पठन का निषेध कैसे हो सकता है। सूत्राभ्यास ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम पर निर्भर है और ऐसा कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता कि श्रावकों से साधुओं के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नियम पूर्वक विशिष्ट होता है। शास्त्रकारों ने अंभव्यों के भी पूर्वज्ञान होना माना है। फिर श्रावकों का शास्त्र पढ़ना क्योंकर निषिद्ध हो सकता है। इस प्रकार शास्त्र एवं युक्ति दोनों ही श्रावक के शास्त्र पढ़ने के पक्ष में ही हैं। (१८)प्रश्न-सात व्यसने कौन से हैं ? इनका वर्णन कहाँ मिलता है ? उत्तर-सात व्यसन का कुफल बतलाते हुए नीतिकार ने कहा हैधूतश्च मांस'च' सुराच वेश्या, पापचिौर्य परदार सेवा । एतानि सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिधोरं नरकं नयन्ति । अर्थ-जूबा, मांस, मदिरा, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री गमन ये सात व्यसने आत्मा को अत्यन्त घोर नरक में ले जाते हैं। ' इन सात व्यसनों की ऐहिक हानियां बतलाते हुए गौतम ऋषि ने गौतम कुलक में ये दो गाथाएं कही हैं।...:.:- जए पसत्तस्स धणस्त नासो, मंसपसत्तस्स दयाप्पणासो। वेसापसत्तस्स .कुलस्स नासो, मज्जे पसत्तस्स बसस्स नासो।। हिंसापसत्तस्स सुधम्मनासो,' चोरीपसत्तस्स सरीरनासो ! तहा परस्थीसु पसत्यस्स, सन्बस्सं नासो अहमा गई. य । __ भावार्थ-जूए में आसक्त व्यक्ति के धन का नाश होता है। मांसंगृद्ध पुरुष में दया नहीं रहती। वेश्यासक्त पुरुष: का कुश नष्ट होता है एवं मद्यमूर्छित व्यक्ति की अपकीर्ति होती है। हिंसानुरागी धर्म से भ्रट हो जाता है। चोरी का व्यसनी शरीर 7
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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