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________________ १५४ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला... . . anamnaminnimmmm immmmmmmm सभी साधुओं के लिये नहीं है। व्यवहारसूत्र के तीसरे उद्देशे में तीन वर्ष की दीक्षां वाले के लिये बहुश्रुत और बह्वागम शब्दों का प्रयोग किया गया है, और कहा है कि उसे उपाध्याय की पदवी दी जा सकती है। इसी प्रकार-पाँच वर्ष की दीक्षा पर्याय.वाले के लिये भी कहा है. और उसे आचार्य ,एवं उपाध्याय दोनों पद के योग्य बताया है । इससे यह सिद्ध होता है कि सामान्य सायुओं के लिये शास्त्राध्ययन के लिये दीक्षा पर्याय की मर्यादा है विशिष्ट क्षयोपशमं वालों के लिये यह मर्यादा कुछ शिथिल भी हो सकती है। किन्तु इससे श्रावक के शास्त्र पठन का निषेध कुछ समझ में नहीं आता। बात यह है कि साधु समाज में शास्त्राध्ययन की परिपाटी चली आ रही है और इसलिये शास्त्रकारों ने मध्यम बुद्धि के साधुओं को दृष्टि में रखते हुए शास्त्राध्ययन के नियम निर्धारित किये हैं। श्रावकों में शास्त्रांध्ययन'को, साधुओं की तरह प्रचार न था इसलिये सम्भव है उनके लिये नियमं न बनाये गये हों। यों भी शास्त्रकारों ने साधुओं की दिनचर्या, आचार आदि का विस्तृत वर्णन किया है, साध्वाचार के वर्णन में बड़े बड़े शास्त्र रचे गये हैं और उनकी तुलना में श्रावकाचार सूत्रों में तो सागर में, बूंद की तरह हैं। फिर क्या आश्चर्य है कि विशेष प्रकार ने देखकर शास्त्रकारों ने इस.सम्बन्ध में उपेक्षा की हो । वैसे शास्त्रों के उक्त पाठ श्रावक के सूत्र पढ़ने के साक्षी हैं। .. . यह भी विचारणीय है कि जब श्राविक अर्थरूप सूत्र पढ़ सकता है फिर मूल पढ़ने में क्या वाधा हो सकती है ? केवल एक अर्द्धमागधी भाषा की ही तो विशेषता है जिसे श्रावक प्रासांनी. से पढ़ सकता है। किसी भी साहित्य में तच्च को ही प्रधानता होती है पर भाषा को नहीं। जब तत्त्व, जानने की अनुमति है.तो मांपा के निषेध में तो कोई महत्त्व प्रतीत नहीं होता।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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