SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग ३५ देश की अपेक्षा वह अमदेश है। एक समय से अधिक दूसरे तीसरे समय में रहता हुआ वही जीव काल की अपेक्षा प्रदेश कहलाता है। निम्न लिखित चौदह द्वारों से समदेशी और अप्रदेशी का विचार किया जायगा । . सपएसा आहारग भविय सन्नि लेस्सा दिट्ठि संजय कसाए । पाणे जोगुवोगे, वेदे य शरीर पज्जत्ती ॥ (१) समदेश ( २ ) आहारक (३) भव्य (४) संज्ञी (५) लेश्या (६) दृष्टि (७) संयत (८) कषाय (६) ज्ञान (१०) योग (११) उपयोग (१२) वेद (१३) शरीर (१४) पर्याप्ति । ( १ ) समदेश द्वार - सामान्य जीव काल की अपेक्षा सप्रदेश हैं। नैरयिक जीव कभी समदेश और कभी अप्रदेश दोनों प्रकार के होते हैं अर्थात् जिस नैरयिक जीव को उत्पन्न हुए अभी एक ही समय हुआ है वह जीव काल की अपेक्षा अप्रदेश कहलाता है और जिस जीव को उत्पन्न हुए एक समय से अधिक हो गया है वह नैरयिक जीव समदेश कहलाता है। एक वचन की अपेक्षा से ऐसा कथन किया गया है। बहु वचन की अपेक्षा इस प्रकार जानना चाहिए - उपपात विरह की अपेक्षा अर्थात् जब कोई भी नैरयिक उत्पन्न नहीं होता उस समय सभी नैरयिक जीव समदेश कहलाते हैं। पूर्वोत्पन्न नैरयिकों में जब एक नैरयिक उत्पन्न होता है तब एक जीव श्रप्रदेश और बहुत जीव सप्रदेश यह भंग पाया जाता है। जब बहुत से जीव उत्पन्न होते रहते हैं तब बहुत जीव श्रमदेश और बहुत जीव सप्रदेश यह भंग पाया जाता है। इसी तरह सब जीवों में जानना चाहिए । (२) आहारक - सामान्य जीव और एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर आहारक जीवों में उपरोक्त तीन भांगे पाए जाते हैं अर्थात् कभी 'सप्रदेश और कभी प्रदेश' होते हैं। कभी 'एक जीव अप्रदेश
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy