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________________ ३४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कहलाता है। इसके चौदह भेद हैं ( १ ) हास्य - जिसके उदय से जीव को हँसी भावे । (२) रति- जिस के उदय से सांसारिक पदार्थों में रुचि हो । (३) अरति -जिसके उदय से धर्म कार्यों में जीव की अरुचि हो । ( ४ ) भय - सात प्रकार के भय की उत्पत्ति । (५) शोक - जिसके उदय से शोक, चिन्ता, रुदन आदि हों। ६) जुगुप्सा - जिस के उदय से पदार्थों पर घृणा उत्पन्न हो । (७) क्रोध - गुस्सा, कोप । (८) मान - घमण्ड, अहंकार, अभिमान । ( 8 ) माया - कपटाई (सरलता का न होना) । (१०) लोभ - लालच, तृष्णा या गृद्धि भाव । (११) स्त्री वेद - जिसके उदय से स्त्री को पुरुष की इच्छा होती है । (१२) पुरुष वेद-जिसके उदय से पुरुष को स्त्री की इच्छा होती है। (१३) नपुंसक वेद - जिसके उदय से नपुंसक को स्त्री और पुरुष दोनों की इच्छा होती है । (१४) मिथ्यात्व - मोहवश तत्त्वार्थ में श्रद्धा न होना या विपरीत श्रद्धा होना मिथ्यात्व कहा जाता है । (ठाणाग १, सूत्र ४६ परिग्रह के अन्तर्गत ) प्रदेशी के चौदह बोल ८४१ - सप्रदेशी जो जीव एक समय की स्थिति वाला है वह काल की अपेक्षा अप्रदेश कहलाता है। जिस जीव की स्थिति एक समय से अधिक हो चुकी है वह काल की अपेक्षा सप्रदेश कहलाता है । सप्रदेश और प्रदेश का स्वरूप बताने वाली निम्न लिखित गाथा हैजो जस्स पढमसमए वह भावस्स सो उ अपएसो । अस्मि वमाणो कालाएसे सपएसो ॥ अर्थात् - जो जीव प्रथम समय में जिस भाव में रहता है काला
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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