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________________ 458 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm रूप स्वतार्थिकों के कठोर वचनों को सहन कर लेते हैं परन्तु भन्य तीथिकों के वचनों को सहन नहीं करते। ऐसे साधु देशविराधक कहलाते हैं। जो साधु अन्य तीथिकों के तथा गृहस्थों के कहे हुए कठोर वचनों को सहन करते हैं किन्तु स्वतीर्थिकों के कठोर वचनों को सहन नहीं करते वे देश भाराधक कहलाते हैं। जो साधु स्वतीर्थिक और अन्य तीर्थिक किसी के भी कठोर वचनों को सहन नहीं करते वे सर्वविराधक कहे जाते हैं। जो साधु स्वतीथिक और अन्य सीर्थिक दोनों के कठोर वचनों को समभाव से सहन करते है वे सर्व भाराधक कहे जाते हैं। उपरोक्त दृष्टान्त देकर यह बतलाया गया है कि जीवों को भाराषक बनना चाहिए, विराधक नहीं। पाराषक बनने से ही जीव का कल्याण होता है। (12) पुद्गलों के शुभाशुभ परिणाम वारहवाँ 'उदक ज्ञात' मध्ययन-स्वभाव से मलिन चित्त वाले भी भव्य प्राणी सद्गुरु की सेवासे चारित्र के माराधक बन जाते हैं। पुद्गल किस प्रकार शुभाशुभ रूप में परिवर्तित हो जाते हैं इस वात को बतलाने के लिए इस अध्ययन में जल का रष्टान्त दिया गया है। चम्पानगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसके सुबुद्धि नामक मन्त्रीथा।वह जीवाजीवादि नव तत्त्वों का जानकारश्रावक था। एक समय भोजन करने के पश्चात् राजा ने उस भोजन के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श भादि की बहुत तारीफ की। राज परिवार ने भी राजा के कयन का अनुमोदन किया किन्तु मुबुद्धि मन्त्री उस समय मौन रहा / तब राजा ने उससे इसका कारण पूछा तो मन्त्री ने जवाब दिया कि इसमें तारीफ की क्या बात है? प्रयोग
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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