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________________ 452 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कुपित हुए और अपनी अपनी सेना सजाफर राजाकुम्भ के ऊपर चढ़ाई कर दी। इस वृत्तान्त को सुन कर राजा कुम्भ घबराया / मल्लिकँवरी ने अपने पिता को आश्वासन दिया और कहा कि आप घबराइये नहीं। मैं सब को समझा दूंगी। भाप सब राजाभों के पास पृथक पृथक् दूत भेज दीजिए कि शाम को तुम मोहन घ आओ। मैं तुम्हें मल्लिकुंवरी दूंगा। राजा कुम्भ ने ऐसा ही किया। पृथक पृथक् द्वार से वे छहों राजा शाम को मोहन घर में आगये। मल्लिकुँवरी ने पहले से मोहन घर में अपने आकार वाली सोने की पुसली बना रखी थी जिसमें ऊपर के छिद्र से प्रतिदिन भोजन का एक एक ग्रास डाला था / उस मुर्वण की पुतली को देख कर वे छहों राजा उसे साक्षात् मल्लिकुंवरी समझ कर उस पर मोहित होगये / इसी समय मल्लिकुवरी ने उस पुतली के ढक्कन कोउघाड़ दिया जिससे उसमें डाले हुए अन्न की अत्यन्त दुर्गन्ध बाहर निकली। उस दुर्गन्ध को न सह सकने के कारण वे छहों राजा पराङ्मुख होकर बैठ गये। इस अवसर को उपयुक्त समझ कर मल्लिकुंवरी ने उनको शरीर की अशुचिता बतलाते हुए धर्मापदेश दिया और अपने पूर्वभव का वृत्तान्त कहा जिसे सुन कर उन छहों राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न होगया। छहों राजाओं ने अपने अपने ज्येष्ठ पुत्र का राज्याभिषेक कर भगवान् मल्लिनाथ के साथ प्रव्रज्या अङ्गीकार कर ली। वर्षीदान देने के पश्चात् भगवान् मल्लिनाथ ने पौप शुक्ला एकादशी को प्रातःकाल दीक्षा ली और दूसरे पहर में उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। ___ भगवान् मल्लिनाथ के 28 गण थे और 28 ही गणधर थे। चालीस हजार साधु, पचपन हजार साध्वियॉ,एक लाख चौरासी हजार श्रावक,तीन लाख पैंसठ हजारश्राविकाएं थीं।६०० चौदह पूर्वधारी साधु,दो हजार अवधिज्ञानी,३२०० केवलज्ञानी, 3500
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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