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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 451 mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwmmmmmmmmmmmmmmmm एक समय चोता नाम की परित्रानिका मिथिला नगरी में आई। मल्लिकुंवरी के पास भाकर शुचि धर्म का उपदेश देने लगी। उसने वतलाया कि हमारे धर्मानुसार भपवित्र वस्तु की शुद्धि जल और मिट्टी द्वारा होती है। मल्लिकुंवरी ने कहा-परिवाजिके ! रुधिर से लिप्त वस्न को रुधिर से धोने पर क्या उसकी शुद्धि हो सकती है ? परित्राजिफाने कहा-नहीं। मल्लिफवरी ने कहा-इसीप्रकार हिंसा से हिंसा की (पाप स्थानों की)शुद्धि नहीं हो सकती।मल्लि कुंवरी का युक्ति पूर्ण वचन सुन कर चोक्षा परित्राजिका निरू त्तर हो गई। मल्लिकुँवरी को दासियों ने उसका उपहास किया / इससे क्रोधित होकर चोक्षा परिव्राजिका वहाँ से निकल गई। वह कम्पिलपुर के राजा जितशत्र के अन्तःपुर में गई / राजा ने उसका आदर सत्कार किया। इसके पश्चात् राजा ने उससे पूछा परिवाजिके ! तुम बहुत जगह घूमती हो / मेरे जैसाअन्तःपुर तुम ने फरी देखा है ? परिव्राजिका ने कहा-राजन् ! भाप कूपमण्डूक प्रतीत होते हैं / मैंने मिथिला के राजा कुम्भ की पुत्री मल्लिकुंवरी को देखा है। वह देवकन्या के समान सुन्दर है। भापका सारा अन्तःपुर उसके पैर के अंगूठे की शोभा को भी प्राप्त नहीं हो सकता। ___ मल्लिकुँवरी के रूप लावण्य की प्रशंसा सुन कर राजा जितशत्र ने अपना एक दूत राजा कुम्भ के पास मिथिला भेजा और मल्लिकुँवरी की मांगणी (याचना) की। * छहों राजामों के दूत एक साथ मिथिला में पहुँचे और अपने अपने राजा का सन्देश कुम्भ राजा को कह सुनाया। एफ कन्या के लिए छः राजाओं की मांगणी देख कर कुम्भ राजा को क्रोध आगया।दूतों का अपमान करके उन्हें अपने नगर से बाहर निकाल दिया। अपमानित होकर दूत वापिस चले गये। उन्होंने जाकर सारा वृत्तान्त अपने अपने राजा से कहा / इससे वे छहों राजा
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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