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________________ श्री जैन सिमान्त बोल संग्रह. पांचवां भाग 427 बुढ' शब्द निकलता है उसी प्रकार अव्यक्त शब्द करते हुए खड़े रहना अथवा शराबी की तरह झूमते हुए खड़े रहना / (16) प्रेक्षा दोप-नवकार आदि का का चिन्तन करते हुए वानर की तरह अोठों को चलाना। योगशास्त्र में हेमचन्द्राचार्य ने कायोत्सर्ग के इक्कीस दोष बतलाये हैं। उनके मतानुसार स्तम्भ दोष, कुडयदोष, अंगुली दोष और भ्र दोष चार हैं, जिनका ऊपर स्तम्भकुड्य दोष, अंगुलिकाभ्र दोष इन दो दोषों में समावेश किया गया है। (भावश्यक कायोत्सर्गाध्ययन गा• 1546-47 ) (प्रवचन सारोद्धार गाथा 247--262) (योगशास्त्र तृतीय प्रकाश) 600- ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र की 16 कथाएं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के गौतम स्वामी श्रादि ग्यारह गणधर हुए हैं। "उप्पण्णेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा" इस त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त कर गणधरों ने द्वादशाङ्गी की रचना की,जिसमें ज्ञान दर्शन चारित्र ये तीन मोक्ष के उपाय बतलाए गए हैं। सव शास्त्रों के मुख्य रूप से चार विभाग हैं- द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग और धर्मकथानुयोग। छठे अङ्ग ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र में कथानुयोग का वर्णन है। भगवान् महावीर स्वामी के ग्यारह गणधरों में से पाँचवें गणघर श्री सुधर्मा स्वामी की ही पाट परम्परा चली है। वर्तमान द्वादशांगी के रचयिताश्री सुधर्मा स्वामी ही माने जाते हैं। उनके प्रधान शिष्य श्री जम्बूस्वामी ने प्रश्न किये हैं और उन्होंने उत्तर दिये हैं। उत्तर देते समय मुधर्मा स्वामी ने प्रत्येक स्थल में ये शब्द कहे हैंहे भायुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने भगवान् महावीर स्वामी से मुना है, वैसा ही तुझे कहता हूँ।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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