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________________ 426 भी सेठिया जैन पन्थमाला और नीचे घुटने तक रख कर खड़े रहना। (6) स्तन दोप- डांस, मच्छर के भय से अथवा प्रज्ञान से चोलपट्टे द्वारा छाती ढक कर कायोत्सर्ग करना। (10) ऊर्द्धिका दोष- एड़ी मिला कर और पंजों को फैला कर खड़े रहना अथवा अंगूठे मिला कर और एड़ी फैला कर खड़े रहना अद्धिका दोप है। (11) संयती दोष- साध्वी की तरह कपड़े से शरीर ढक कर कायोत्सर्ग करना। (12) खलीन दोप- लगाम की तरह रजोहरण को आगे रख कर खसे रहा। लगाम से पीडित अश्व की तरह मस्तक को ऊपर नीचे हिलाना खलीन दोप है, कई भाचार्य खलीन दोप की ऐसी व्याख्या भी करते हैं। (13) वायस दोप-कौवे की तरह चञ्चल चित्त होकर इधर उधर भारखें घुमाना अथवा दिशाओं की ओर देखना। (14) कपित्थ दोप-पटपदिका (ज) के भय से चोलपट्टे को कपिन्थ की तरह गोलाकार कर जंघादि के बीच रख कर खड़े रहना / मुट्ठी वॉध कर खड़े रहना कपित्थ दोप है ऐसा भी अथ किया जाता है। __ (15) शीर्पोत्कम्पित दोप- भूत लगे हुए व्यक्ति की तरह सिर धुनते हुए खड़े रहना। (16) मूक दोष-मुक व्यक्ति की तरह हुँ हुँ इस तरह अव्यक्त शब्द करते हुए फायोत्सर्ग करना / __ (17) अंगुलिकाभ्र दोप- पालापकों (पाठ की आवृत्तियों) को गिनने के लिए अंगुली हिलाना एवं दूसरे व्यापार के लिए भौंह चला कर संकेत करना। (18) वारुणी दोप- तैयार की जाती हुई शराय से जैसे 'बुड
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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