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________________ mamannoun श्री जैन सिद्धान्त बोल सप्रह, पाचवा भाग ~ ammmmmmmmmmmmmmmmmmmm~ चमार,जलाहा आदि निम्न कोटि के शिल्प से भाजीविका करने चाले शिल्प जुङ्गित हैं । यह जुङ्गित का चौथा प्रकार भी है। वे सभी दीक्षा के भयोग्य हैं। इन्हें दीक्षा देने से लोक में अपयश होने की संभावना रहती है। (१६) अवबद्ध-धन लेकर नियत काल के लिये जो व्यक्ति पराधीन बन गया है वह प्रवबद्ध कहलाता है। इसी प्रकार विद्या पढ़ने के निमित्त जिसने नियत काल तक पराधीन रहना स्वीकार कर लिया है वह भी अवबद्ध कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति को दीक्षा देने से क्लेश आदि की शंका रहती है। (१७) भृतक-नियत अवधि के लिये वेतन पर कार्य करने वाला व्यक्ति भृतक कहलाता है। उसे दीक्षा देने से मालिक अपसन्न हो सकता है। (१८)शैक्ष निस्फेटिका- माता पितादि की रजामन्दी के बिना जो दीक्षार्थी भगा कर लाया गया हो या भाग कर आया हो वह भी दीक्षा के अयोग्य होता है। उसे दीक्षा देने से माता पिता के फर्म बन्ध का संभव है एवं साधु अदत्तादान दोष का भागी होता है। (प्रवचन सारोद्धार द्वार १०७) (धर्मसंग्रद अधिकार ३ गाया ७८ टीका ) पुरुषों की तरह उक्त अठारह प्रकार की स्त्रियाँभी उक्त कारणों से दीक्षा के अयोग्य बतलाई गई हैं। इनके सिवाय गर्भवती और स्तन चघने वाले छोटे बच्चों वाली स्त्रियाँ भी दीक्षा के अयोग्य हैं। इस प्रकारदीक्षा के अयोग्य स्त्रियॉकुल पीस हैं। (प्रवचन सारोद्धार द्वार १०८) नोट- उपरोक्त मठारह बोल उत्सर्ग मार्ग को लक्ष्य में रख कर कहे गए है । अप वाद मार्ग में गुरु आदि उस दीक्षार्थी को योग्यता देख कर सुन व्यवहार के अनुसार दीक्षा दे सकते हैं।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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