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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाचवा भाग ३८५ ~ - - . .. wormwarmmmmmmmmmmmmmmm.ne दूसरों से सेवा नहीं कराता। (१७)पादपोपगमन मरण-संधारा करके वृक्ष के समान जिस स्थान पर जिस रूप में एक बार लेट जाय फिर उसी जगह उसी . रूप में लेटे रहना और इस प्रकार मृत्यु होजाना पादपोपगमन मरण है । इस मरण में हाथ पैर हिलाने का भी भागार नहीं होता। (समवायाग १७ वा समवाय) (प्रवचनसारोद्धार १७५ वॉ द्वार, गा• १००६-१७) ८८०- माया के सतरह नाम फपटाचार को माया कहते हैं। इसके सतरह नाम हैं(१) माया। (8) जिम्हे- जैह्म । (२) उवही- उपधि। (१०) दंभे- दम्भ । (३) नियडी-निकृति । (११) कूडे -- कूट । (४) वलए-वलय। (१२) फिब्बिसे- किल्विष । (५) गहणे-- गहन । (१३) भरणायरणया-अनाचरणता। (६) णमे- न्यवम। (१४) गृहणया- गृहनता। (७) कक्के- कल्फ। (१५) वंचणया- वंचनता। (८) कुरुए-कुरुक। (१६) परिकुचरणया-परिकंचनता (१७) सातिओग-सानियोग।। (सममायांग ५२ वर्मा, मोहनीय कर्म के ५२ नामों में से ) ८८१- शरीर के सतरह द्वार पनवणा सूत्र के इक्कीसवें पद का नाम शरीर पद है। इसमें शरीरों के नाम, अर्थ, आकार, परिमाण आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन्हीं के माधार से शरीर के सतरह द्वारों का कथन किया जायगा (१) नाम द्वार-औदारिक शरीर, वैक्रियफ शरीर, आहारफ शरीर, तैजस शरीर और फार्मण शरीर।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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