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________________ ३८४ ~ ~.. .... ~ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला - ~ (१२) केवलिमरण- केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद मृत्यु होना केवलिमरण है। (१३) वैहायसमरण-आकाश में होने वाली मृत्यु को वैवायस मरण कहते हैं। वृक्ष की शाखा आदि से बॉध देने पर या फॉसी आदि से मृत्यु हो जाना भी वैहायसपरण है। (१४) गिद्धपिठमरण-गिद्ध,शृगाल आदि मांसाहारी प्राणियों द्वारा लाया जाने पर होने वाला मरण गिद्धपिहमरण है। यह दो प्रकार से होता है-शरीर का मांस खाने के लिए आते हुए हिंसक प्राणियों को न रोकने से या गिद्ध आदि के द्वारा खाए जाते हुए हाथी ऊँट यादि के फलेवर में प्रवेश करने से । अथवा अपने शरीर पर लाल रंग या मांस की तरह मालूम पड़ने वाली किसी बस्तु को लगा कर अपनी पीठ गिद्ध मादि को खिला देना भौर उससे मृत्यु प्राप्त करना गिद्धपिट्ट परण है। इस प्रकार की मृत्यु महासत्त्व शाली मनुष्य प्राप्त करते हैं। कर्मों की निर्जरा के लिए वे अपने शरीर को मांसाहारी प्राणियों का भक्ष्य बना देते हैं। __ यदि यह मरण विवशता या अज्ञानपूर्वक अथवा कषाय के घावेश में हो तो वह बालमरण है । इसका स्वरूप चौथे भाग बोल नं. ७६८ में दिया जा चुका है। (१५) भक्त प्रत्याख्यानमरण- यावज्जीवन तीन या चारों माहारों का त्याग करने के बाद जो मृत्यु होती है उसे भक्तमत्याख्यान मरण कहा जाता है। इसी को भक्तपरिज्ञा भी कहते हैं । (१६) इङ्गिनीमरण- यावज्जीवन चारों भाहारों के त्याग के वाद निश्चित स्थान में हिलने डुलने काभागार रख कर जो मृत्यु होती है उसे इगिनीमरण कहते हैं । इजिन्नी मरण वाला अपने स्थान को छोड़ कर कहीं नहीं जाता। एक ही स्थान पर रहते हुए हाथ पैर मादि हिलाने डुलाने का उसे आगार होता है। वह
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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