SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सतरहवां बोल संग्रह S ८७७--विनय समाधि अध्ययन की १७गाथाएं दशकालिक सूत्र के नवें अध्ययन का नाम विनयसमाधि है। उस में चार उद्देशे हैं। पहले उद्देशे में १७ गाथाएं हैं। दूसरे में २४ । तीसरे में १५ और चौथे में७।पहले उद्देशे की १७ गाथाओं का भावार्थ नीचे लिखे अनुसार है (१) जो शिष्य अहंकार, क्रोध, छल तथा प्रमाद के कारण गुरु की सेवा में रहता हुआ भी विनयधर्म की शिक्षा नहीं लेता। अहंकार श्रादि दुर्गण उसके ज्ञान आदि सद्गुणों को उसीप्रकार नष्ट कर देते हैं जिस प्रकार बॉस का फल स्वयं बॉस को नष्ट कर देता है। (२) जो दुर्वद्धि शिष्य अपने गुरु को मन्दबुद्धि, अल्पवयस्क और अल्पज्ञ जान कर उनकी हीलना करता है, निन्दा करता है यह मिथ्यात्व को प्राप्त होता है तथा गुरु की वड़ी भारीअशातना करने वाला होता है। (३) बहुत से मुनि वयोवृद्ध होने पर भी स्वभाव से मन्दबुद्धि होते हैं। बहुत से छोटी उमर वाले भी बुद्धिमान् तथा शास्त्रों के झाला होते हैं। ज्ञान में न्यूनाधिक होने पर भी सदाचारी और सद्गणी गुरुजनों का अपमान न करना चाहिए। उनका अपमान अग्नि के समान सभी गुणों को भस्म कर देता है। (४) यह छोटा है, कुछ नहीं कर सकता ऐसासमझ कर भी जो व्यक्ति सॉप को छेड़ता है उसे साँप काट खाता है और बहुत
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy