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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवां भाग ३५६ rammmmmmmmmmmmmmmar कर्म बॉधते समय प्राणी खुश होता है किन्तु जब उनका अशुभ फल उदय में आता है तब वह महान् दरवी होता है। हँसते हँसते प्राणी जिन कर्मों को वॉधते हैं, रोने पर भी उनका छुटकारा नहीं होता । फिस रूप में कर्म बंधते हैं और किस रूप में उदय में आते हैं यही कर्मों की विचित्रता है। __ जंगल में आगे चलती हुई दमयन्ती को धनदेव नाम का एक सार्थपति मिला । वह भचलपुर जा रहा था। दमयन्ती भी उसके साथ हो गई। धनदेव ने उसका परिचय जानना चाहा किन्तु दमयन्ती ने अपना वास्तविक परिचय न दिया। उसने कहा कि मैं दासी हूँ। कहीं नौकरी करना चाहती हूँ। धनदेव ने विशेष छानवीन करना उचित न समझा। धीरे धीरे वे सब लोग भचलेपुर पहुंचे। धनदेव का सार्थ (काफिला) नगर के बाहर ठहर गया। अचलपुर में ऋतुपर्ण राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम चन्द्रयशा था। उसे मालूम पड़ा कि नगर के बाहर एक सार्थ ठहरा हुआ है। उसमें एक कन्या है। वह देवकन्या के समान सुन्दर है। कार्य में बहुत होशियार है । उसने सोचा यदि उसे अपनी दानशाला में रख दिया जाय तो बहुत अच्छा हो । रानी ने नौकरी को भेज कर उसे बुलाया और वातचीत करके उसे अपनी दोनशाला में रख लिया। MI ___ चन्द्रयशा दमयन्ती की मौसी थी। चन्द्रयशा ने उसे नहीं पहिचाना । दमयन्ती अपनी मौसी और मौसा को भाल प्रकार पहिचानती थी किन्तु उसने अपना परिचय देना उचित न समझा। वह दानशाला में काम करने लग गई। माने जाने वाले अतिथियों को खूब दान देती हुई ईश्वरभजन में अपना समय विताने लगी। __एक समय कुण्डिनपुर का एक ब्राह्मण अचलपुर आया। राजा रानी ने उचित सत्कार करके महाराजा भीम और रोनी पुष्परत .mart
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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