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________________ ३५८ श्री सेठिया जैन मन्यमाला mararmmm कठोर तपस्या करते हुए विचरने लगे। एक समय गुरु की भाज्ञा लेकर सूर्य की भातापना लेने के लिये वे जंगल में गये । वहॉजाफर निश्चल रूप से ध्यान में खड़े हो गये। परिणामों की विशुद्धता के कारण वे आपकश्रेणी में चढ़े और घाती कर्मों का क्षय कर उन्होंने तत्काल केवलज्ञान केवतादर्शन उपार्जन कर लिए । उनका केवलज्ञान महोत्सव मनाने के लिये देव आने लगे। यह दृश्य देख कर दमयन्ती भी उधर गई । वन्दना नमस्कार करके उसने अपने पूर्वभव के विपय में पूछा। फेवली भगवान् ने फरमाया इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के अन्दर ममण नाम का एक राजा था। उसकी स्त्री का नाम वीरमती था। एक समय राजा और रानी दोनों कही बाहर जाने के लिये तैयार हुए। इतने में सामने एक मुनि आते हुए दिखाई दिये । राजा रानी ने इसे अपशकुन समझा । अपने सिपाहियों द्वारा मुनि को पकड़वा लिया और बारह घन्टे तक उन्हें वहाँ रोक रक्खा । इसके पश्चात् राजा और रानी का क्रोध शान्त हुआ । उन्हें सद्बुद्धि आई। मुनि के पास पाकर वे अपने अपराध के लिये वारवार क्षमा मांगने लगे । मुनि ने उन्हें धर्मोपदेश दिया जिससे राजा और रानी दोनों ने जैनधर्म स्वीकार किया और वे दोनों शुद्ध सम्यक्त्व का पालन करते हुए समय विताने लगे । आयुष्य पूर्ण होने पर ममण का जीव राजा नन्न हुआ है और रानी वीरमती का जीप तू दमयन्ती हुई है। निष्कारण मुनिराज फोबारह घन्टे तक रोक रखने के कारण इस जन्म में तुम पति पत्नी का बारह वर्ष तक वियोग रहेगा। . यह फरमाने के बाद फेवली भगवान् के शेष चार अघाती कर्म नष्ट हो गए और वे उसी समय मोक्ष पधार गये । - केवली भगवान् द्वारा अपने पूर्वभव का,यत्तान्त सुन कर दमयन्तीकमा की विचित्रता पर वारवार विचार करने लगी। अशुभ
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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