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________________ श्री सेठिश जैन अन्धमाला हाथी पूरे वेग से दौड़ा जा रहा था। इससे नगर में हाहाकर मच गया। हाथी को वश में करने के लिए बहुत बड़ी सम्पत्ति देने के लिए राजा ने घोपणा फरवाई। राजसन्मान और सम्पत्ति को सभी लोग चाहते थे किन्तु हाथी का सामना करना साक्षात् मृत्यु थी। मरना कोई नहीं चाहता था। नल हाथी को पकड़ने की कला मानता था। इसलिए वह आगे चढ़ा । एक सफेद कपड़े को वांस पर लपेट कर हाथी के सामने खड़ा कर दिया और नल उसके पास छुप कर खड़ा हो गया। कपड़े को आदमी समझ कर उसे मारने के लिए ज्यों ही हाथी दौड़ कर उधर माया त्यों ही पास में छुपा हुआ नल हाथी का कान परुड़ कर उसकी गर्दन पर सवार हो गया। उसने हाथी के मर्मस्थान पर ऐसा मुष्टि प्रहार किया जिससे उसका मद तत्काल उतर गया। शान्त होकर वह जहॉफा तहाँ खड़ा होगया। नल ने उसे भालानस्तम्भ (हाथी के बांधने की जगह) में बॉध दिया। राजा और प्रजा का भय दूर हुआ। सर्वत्र प्रसन्नता छा गई। राजा दधिपर्ण बहुत सन्तुष्ट हुआ। वस्त्राभरण से सन्मानित करके राजा ने उस कुबड़े को अपने पास विठाया। राजा उसका परिचय पूछनेलगा। नल ने अपना वास्तविक परिचय देना ठीक नहीं समझा । उसने कहा- मैंने अयोध्या नरेश नल के यहॉरसोइए का काम किया है। राजा नल सूर्य की कृपा से सूर्यपाक रमवती बनाना जानते थे। यहुत भाग्रह करने पर उन्होंने मुझे भी सिखा दिया है। तब राजा दधिपर्ण ने कहा तुम हमारे यहॉरहो और रसोइए का काम करो। उसने राजा की बात मान ली और काम करने लगा। राजा नल जव दमयन्ती को छोड़ कर चला गया तो कितनी ही देर तक दमयन्ती सुरवपूर्वक सोती रही। रात्रि के पिछले पहर में उसने एक स्वप्न देखा- 'फलों से लदा हुमा एक माम्रक्ष
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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