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________________ ३५१ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवां भाग पाण्डव वन में कष्ट सहन कर रहे हैं। राजमहलों में पली हुई द्रौपदी भी उनके साथ कष्ट सहन कर रही है। उनका वियोग मुझे दुखी कर रहा है। ऐसी अवस्था में मेरे लिये आनन्द मंगल कैसा १ कृष्ण ने उसे सान्त्वना दी और शीघ्र ही उसके के दुःख को दूर करने का आश्वासन दिया। कृष्ण वासुदेव दुर्योधन आदि कौरवों के पास आये। कुछ देकर पाण्डवों के साथ सन्धि कर लेने के लिये उन्हें बहुतेरा समझाया किन्तु कौरव न माने । परिणामस्वरूप महाभारत युद्ध हुआ । लाखों आदमी मारे गये । पाण्डवों की विजय हुई | युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बैठे । कुन्ती राजमाता और द्रौपदी राजरानी बनी । न्याय और नीतिपूर्वक राज्य करने से मजा महाराज युधिष्ठिर को धर्मराज कहने लगी। 1 युद्ध में दुर्योधन यदि सभी कौरव मारे गये थे। पुत्रों के शोक से दुखी होकर धृतराष्ट्र और गान्धारी वन में जाकर रहने लगे । उनके शोक सन्तप्त हृदय को सान्त्वना देने तथा उनकी सेवा करने के लिये कुन्ती भी उनके पास वन में जाकर रहने लगी । कुछ समय पश्चात् कुन्ती ने दीक्षा लेने के लिये अपने पुत्रों से अनुमति माँगी । पाण्डवों के इन्कार करने पर कुन्ती ने उन्हें समझाते हुए कहा - पुत्रो ! भो जन्म लेकर इस संसार में माया है एक न एक दिन उसे अवश्य यहाँ से जाना होगा । यहाँ सदा किसी की न बनी रही है और न सदा बनी रहेगी। कल यहाँ कौरवों का राज्य था आज उनका नाम निशान भी नहीं है । आत्मशान्ति न राज्य से मिलती है, न धन से, न कुटुम्ब से और न वैभव से । आत्मशान्ति तो त्याग से ही मिल सकती है। मैंने राज रानी वन कर पति मुख देखा, तुम्हारे वन में चले जाने पर पुत्रवियोग का कष्ट सहन किया। तुम्हारे वापिस आने पर हर्षित हुई।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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