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________________ ३५० श्री सेठिया जैन मन्थमाला wn ww LAVwww VANV www हुए। ये पाँचों पाण्डव कहलाते थे । श्रेष्ठ गुरु के पास इन्हें उत्तम शिक्षा दिलाई गई। थोड़े ही समय में ये पाँचों शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्यार्थीों में प्रवीण हो गए। एक समय पाण्डु राजा सैर करने के लिये जंगल में गये । रानी कुन्ती और माद्री दोनों भी साथ में थीं । वसन्तक्रीड़ा करता हुआ राजा पाण्डु आनन्द पूर्वक समय बिता रहा था। इसी समय अकस्मात् हृदय की गति बन्द हो जाने से उसकी मृत्यु हो गई । इस व्याकस्मिक वज्रपात से रानी कुन्ती और माद्री को बहुत शोक हुआ। जब यह खबर नगर में पहुँची तो चारों ओर कुहराम छा गया । पाण्डव शोक समुद्र में डूब गये । उन्होंने अपने पिता का यथाविधि अग्नि संस्कार किया। माता कुन्ती और माड़ी को महलों में लाकर उनकी विनय भक्ति करते हुए वे अपना समय विताने लगे । योग्य नय होने पर पाँचों पाण्डवों का विवाह कम्पिलपुर के राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के साथ हुआ। द्रौपदी धर्मपरायणा एवं पतिव्रता थी । राजा पाण्डु के बड़े भाई का नाम धृतराष्ट्र था। वे जन्मान्ध थे । उनकी पत्नी का नाम गान्धारी था। उनके दुर्योधन भादि सौ पुत्र थे। जो कौरव कहलाते थे । दुर्योधन बड़ा कुटिल था। वह पाण्डवों से ईर्ष्या रखता था । वह उनका राज्य छीनना चाहता था। उसने पाण्डवों को जुआ खेलने के लिए तैयार कर लिया । पाण्डवों ने अपने राज्य को दॉव पर रख दिया। वे जुए में हार गये। कौरवों ने उनका राज्य छीन लिया । द्रौपदी सहित पाँचों पाण्डव वन में चले गये । वहाँ उन्हें अनेक कष्ट सहन करने पड़े । पुत्रवियोग से माता कुन्ती बहुत उदासीन रहने लगी । एक समय कृष्ण वासुदेव कुन्ती देवी से मिलने के लिये आये । प्रणाम करके उन्होंने कहा- भूआजी ! आनन्द मंगल तो है ? कुन्ती ने उत्तर दिया- वत्स ! तुम्हीं सोचो - तुम्हारे भाई पाँचों
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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