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________________ (३१) ر बोल नं० पृष्ठ बोल नं० पृष्ठ ८३१ श्रावक के चौदह नियम २३ / सतरह गाथाएं ४२० ८८३ श्रावक (भाव) के ८९० साधु के अठारह कल्प ४०२ सतरह लक्षण ३९२ | ८३४ साधु के लिए अकल्पनीय ९०० श्री कृष्ण का अपरकङ्का । चौदह बातें २९ गमन ४६६ ८६७ साधु को कल्पनीय ८२२ श्रुतज्ञान के चौदह भेद ३ प्रामादि स्थान १६६ सतरहवाँ बोल संग्रह ३७७ ८४७ सास्वादान सम्यग्दृष्टि गुणस्थान ८७५ सतियाँ सोलह १८५ ८४९ सिद्धों के पन्द्रह भेद ११७ ८७६ सतियों के लिए प्रमाण ८७५ सीता ३७५ ३२१ भूत शास्त्र ८४७ सत्ता गुणस्थानों में ९९० । ८७५ सुन्दरी ८४१ सप्रदेशी अप्रदेशी के ८७५ सुभद्रा चौदह द्वार ३४ ८७५ सुलसा ३१३ ८६२ सभिक्खु अध्ययन की ९०० सुसुमा और चिलाती सोलह गाथाएं १५२ पुत्र की कथा ४७० ८४७ सम्यग मिथ्यावृष्टि । ८४७ सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान ८२ गुणस्थान सोलहवाँ बोल संग्रह १४७ ८४७ सयोगोकेवली गुणस्थान ८५ । ८७५ सोलह सतियाँ १८५ ८४७ संभव सत्ता १०० ८३३ स्थविरकल्पी साधु के ८२६ संमूछिम मनुष्यों के लिए उपकरण २८ उत्पत्ति स्थान १८ ८८४ संयम के सतरह भेद ३९३, ८४७ स्थिति घात ८८५ संयम के सतरह भेद ३९५ ८२९ स्वप्न चौदह ८९८ संयम से गिरते हुए को ८७३ स्वप्न सोलह चन्द्रगुप्त के १७८ स्थिर करने विषयक ८४७ स्वरूप सत्ता له سه
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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