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________________ ३४८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला wwwwwwwwwwwnn mom numrowwww. warna - na - www मन्त्री को शय्या पर पड़ा हुआ देख कर राजा कोबहुत दुःख हुआ। प्रेम की अधिकता से वह स्वयं उसकी सेवा शुश्रषा में लग गया। पति को सेवा करते हुएदेख कर रानी शिवा देवी भी उसकी सेवा में लग गई। रानी का शुद्ध और गम्भीर हृदय जान कर मन्त्री अपने नीच कार्य का पश्चात्ताप करने लगा। उसकी भांखों से आंसुओं की धारा बह चली। रानी उसके भावों को समझ गई। उसे सान्त्वना देती हुई वह कहने लगी-भाई! पश्चात्ताप से पाप इल्फा हो जाता है। एक बार भूल करके भी यदि मनुष्य अपनी भूल को समझ कर सन्मार्ग पर जाय तो वह भूला हुआ नहीं गिना जाता । मन्त्रीने शिवा देवी के पैरों में गिर कर क्षमा मांगी। एफसमय नगर में अग्निकाभयंकर उपद्रव हुमा।भनेक उपाय फरने पर भी वह शान्त न हुमा। प्रजा में हाहाकार मच गया। तव इस प्रकार की आकाशवाणी हुई कि कोई शीलवती स्त्री अपने हाथ से चारों दिशाओं में जल छिड़के तो यह अग्नि का उपद्रव शान्त हो सकता है। आकाशवाणी कोसन कर बहुत सी स्त्रियों ने ऐसा किया किन्तु उपद्रव शान्त न हुआ। महल की छत पर चढ़ करशिवादेवीने चारों दिशाओं में जल छिड़का। जल छिड़कते ही अग्नि का उपद्रव शान्त हो गया। मजा में वर्ष छा गया। 'महासती शिवादेवी की जय' की ध्वनि से आकाश गुंज उठा। एक समय ग्रामानुमाम विहार करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उज्जयिनी नगरी के वाहर उद्यान में पधारे। रानी शिवा देवी सहित राजा चण्डपद्योतन भगवान् को वन्दना नमस्कार करने के लिए गया। भगवान् ने धर्मोपदेश फरमाया।शील का माहात्म्य बताते हुए भगवान् ने फरमाया देवदाणवगन्धव्वा, जक्खरक्खसकिन्नरा। घम्भयारिं नमसंति, दुकरं जे करन्ति तं ॥
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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