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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग ३४१ mmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwmmon यह जिनदास श्रावक की पुत्री है, अभी कुंवारी है। किसी जैनधर्मप्रेमी के साथ ही विवाह करने का इसके पिता का निश्चय है। बुद्धदास के हृदय में उस कन्या को प्राप्त करने की उत्कट अभिलापा उत्पन्न हो गई । वह मन में विचारने लगा कि मेरे में और तो सारे गुण विद्यमान हैं सिर्फ इतनी कमी है कि मैं जैनी नहीं हूँ। इसे प्राप्त करने के लिये मैं जैनी भी बन जाऊँगा। ऐसा दृढ़ निश्रय करके बुद्धदास मय जैन साधुमों के पास जाने लगा। दिखावटी विनय भक्ति करके वह उनके पास ज्ञान सीखने लगा। मनिवन्दन, व्याख्यान श्रवण, त्याग, पच्चरखाण, सामारि मादि धार्मिक क्रियाएं करने लगा। भर बुद्धदास पक्का धार्मिक समझा जाने लगा। सभी लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। धीरे धीरे जिनदास श्रावक को भी ये सारी बातें मालूम हुई। एक दिन जिनदास ने उसे अपने घर भोजन के लिए निमन्त्रण दिया । बुद्धदास तो ऐसे अवसर की प्रतीक्षा में था ही। उसे बहुत पै हुमा । मातःकाल उठ कर उसने नित्य नियम किया। मुनिवन्दन करके उसने पोरिसी का पञ्चक्रवाण कर लिया। पोरिसी आने पर वह जिनदास श्रावक के घर आया। याली परोसते समय उसने कहा मुझे अमुक विगय और इतने द्रव्यों के सिवाय माज त्याग है इसलिए इसका ध्यान रखियेगा। बुद्धदास की इन बातों से जिनदास को यह विश्वास होगया कि धर्म पर इसका पूर्ण प्रेम है और यह धर्म के मर्म को अच्छी तरह जानता है। यह सुभद्रा के योग्य वर है ऐसा सोच फर जिनदास ने बुद्धदास के सामने अपने विचार प्रकट किये । परले तो बुद्धदास ने ऊपरी ढोंग बता कर कुछ आनाकानी की किन्तु सेठ के अधिक कहने पर बुद्धदास ने कहा- यद्यपि इस समय मेरा विचार विवाह करने का नहीं था तथापि आप सरीखे बड़े भाद
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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