SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सेठिया चैन प्रन्यमाला लेकर भगवान् के दर्शनार्थ गई । वापिस लौटते समय रास्ते में भीड़ होने के कारण उसे बहुत देर खड़ी रहना पड़ा। इतने में रात हो गई। मृगावतीअंधेरा हो जाने पर उपाश्रय में पहुँची। वहाँ श्राकर उसने चन्दनबाला को वन्दना की । प्रवर्तिनी होने के कारण उसे उपालम्भ देते हुए चन्दनवाला ने कहा- साध्वियों को सूर्यास्त के बाद उपाश्रय के बाहर न रहना चाहिये। मृगावती अपनादोष स्वीकार करके उसके लिये पश्चात्ताप करने लगी। समय होने पर चन्दनवाला तथा दूसरी सानियाँ अपने अपने स्थान पर सो गई,किन्तु मृगावती बैठी हुई पश्चात्ताप करती रही। धीरे धीरे उसके घाती कर्म नष्ट हो गए। उसे केवलज्ञान होगया। __ अंधेरी गत थी। सब सतियाँ सोई हुई थीं। उसी समय मृगावती ने अपने ज्ञान द्वारा एक काला सांप देखा। वह चन्दनवाला के हाथ की तरफ आ रहा था। यह देख कर मृगावती ने चन्दनवाला के हाथ को उठा लिया। हाथ के छूए जाने से चन्दनवाला की नींद खुल गई। पूछने पर मृगावती ने सांप की बात कह दी और निद्राभंग करने के लिए क्षमा मांगी। चन्दनवाला ने पूछा-अंधेरे में आपने सॉप को कैसे देख लिया? मृगावती ने उत्तर दिया-मापकी कृपा से मेरे दोष नष्ट हो गए है, अतः ज्ञान कीज्योति प्रकट हुई है। चन्दनवाला- पूर्ण या अपूर्ण ? मृगावती-भापकी कृपा होने पर अपूर्णता कैसे रह सकती है ? चन्दनवाला- तब तो आपको केवलज्ञान प्राप्त हो गया है। बिना जाने मुझ से आशातनाहुई है। मेरा अपगध क्षमा कीजिए। चन्दनवाला ने मृगावती को बन्दना की। केवली की आशा. तना के लिए वह पश्चात्ताप करने लगी। उसी समय उसके घाती फर्म नष्ट हो जाने से उसे भी फेवलज्ञान होगया। मायुष्य पूरी होने पर सती मृगावती सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुई।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy