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________________ भी जैन सिमान्त पोल संमह, पांदचा भाग ३१॥ पास पड़ाव डाल कर दूत द्वारा मृगावती को कहलाया- मृगावती! यदि तुम अपना और अपने पुत्र का भला चाहती हो तो शीघ्र मेरी बात मानलो नहीं तो तुम्हारा राज्य नष्ट कर दिया जायगा। ___ मृगावती ने भापत्ति को आई हुई जानकर नगरी के माकार पर सिपाहियों को तैनात कर दिया। सब प्रकार का प्रबन्ध करके वा अपने शील की रक्षा के लिए नवकार मन्त्र का जापकरने लगी। उसी समय ग्रामानुग्राम विचर कर जगत् का कल्याण करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कौशाम्बी पधारे। नगरी के बाहर देवों ने समवसरण की रचना की। भगवान् के प्रभाव से पास पास के सभी प्राणी अपने वैर को थूल गए। राजा चण्डप्रद्योतन पर भी असर पड़ा । भगवान् का उपदेश सुनने के लिए वह समवसरण में भाया । मृगावती को भी भगवान् के भागमन फा समाचार जान कर बड़ी खुशी हुई। अपने पुत्र को साथ लेकर वह नगरी के बाहर भगवान के दर्शनार्थ गई । वह भी धर्मोपदेश सुनने के लिए बैठ गई। भगवान् ने सभी के लिए हितकारक उपदेश देना शुरू किया। भगवान् के उपदेश से मृगावती ने उसी समय दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की। यह सुन कर चण्डपद्योतन को भी बड़ा हर्ष हुआ। उसने उदयन को कौशाम्बी के राजसिंहासन पर बैग कर राज्याभिषेक महोत्सव मनाया। मृगावती ने भीराजा को सदैव इसी प्रकार उदयन के ऊपर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखने का सन्देश दिया। इस के बाद मृगावती ने भगवान् के पास दीक्षा धारण कर ली तथा महासती चन्दनवाला कीभाज्ञा में विचरने लगी। एक बार श्रमण भगवान् महावीर विचरते हुए कौशाम्बी पधारे। चन्दनवाला का भी अपनी शिष्याभों के साथ वहीं आगमन हुआ। एक दिन मृगावती अपनी गुरुभानी सती चन्दनबाला की भाज्ञा
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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