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________________ श्री सेठिया जैन प्रथमाला ANANNNNN मेरा उद्धार करेंगे। भगवान् के गुणगान और उन्हीं के स्मरण में लीन रहती हुई वह उस दिन की प्रतीक्षा करने लगी। ___ भगवान् अरिष्टनेमि के छोटे भाई का नाम रथनेमि था । एक ही माता पिता के पुत्र होने पर भी उन दोनों के स्वभाव में महान् अन्तर था । नेमिनाथ जिन वस्तुओं को तुच्छ समझते थेरथनेमि उन्हीं के लिए तरसते थे। इन्द्रियों को तृप्त करना,सांसारिक विषयों का सेवन करना तथा कामभोगों को भोगनाही वे अपने जीवन का ध्येय मानते थे। ___ उन्होंने राजीमती के सौन्दर्य और गुणों की प्रशंसासन रक्खी थी। वे चाहते थे कि राजीमती उन्हें ही प्राप्त हो किन्तु अरिष्टनेमिके साथ उसके विवाह का निश्चय हो जाने पर मन मसोस कर रह गए। अरिष्टनेमि विवाह नहीं करेंगे इस निश्चय को जान कर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। उनके हृदय में फिर आशा का संचार हुश्रा और राजीमती को प्राप्त करने का उपाय सोचने लगे। इस कार्य के लिए रथनेमि ने एक दूती को राजीमती के पास । भेजा। पुरस्कार के लोभ में पड़ कर दूती राजीमती के पास गई। एकान्त अवसर देख कर उसनेरथनेमि की इच्छा राजीमती के सामने प्रकट की और विविध प्रकार से उसे सांसारिक सुखों की ओर आकृष्ट करके यह सम्बन्ध स्वीकार करने का आग्रह किया। उसने रथनेमि के सौन्दर्य,वीरता, रसिकता आदि गुणों की प्रशंसा की। विषयसखों की रमणीयता का वर्णन किया और राजीमती से फिर कहा-आपको सब प्रकार के सुख प्राप्त हैं। शारीरिक सम्पत्ति है, लक्ष्मी है, प्रभुता है। रथनेमि सरीखे सुन्दर और सहृदय राज कुमार आपके दास बनने को तैयार हैं। मानव जीवन और सब प्रकार के सांसारिक सुखों को प्राप्त करके उन्हें व्यर्थ जाने देना बुद्धिमत्ता नहीं है। अतःइस प्रस्ताव को स्वीकार कीजिए और अनु
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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