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________________ - श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग २३७ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm मैं उन्हीं के कहने पर आ जाती किन्तु उस दक्षित वातावरण में जाना मैंने ठीक नहीं समझा। चन्दनवाला ने अपना कयन जारी रखते हुए कहा-आप ही बताइए! मेरे पिता का क्या अपराधथा जिससे आपने चम्पा पर चढ़ाई की ? यदि आप को चम्पा का लोभ था तो आप उस पर कब्जा कर लेते। मेरे पिता तो स्वयं ही उसे छोड़ कर चले गए थे। अगर सेना ने आपका सामना किया था तो यह सेना का अपराधथा। निर्दोष मजाने श्रापका क्या बिगाड़ा था जिससे उस पर अमानुषिक अत्याचार किया गया ? चन्दनवाला की बातों को शतानीक सिर नीचा किए चुपचाप सुन रहा था। उसके पास कोई उत्तर न था। वह फिर कहने लगी- मैं यह नहीं कहना चाहती कि राजधर्म का त्याग किया जाय, किन्तु राजधर्म प्रजा की रक्षा करना है। उसका विनाश नहीं। क्या चम्पा को लूट फर आपने राजधर्म का पालन किया है ? क्या आप को मालूम है कि आपकी सेना ने , चम्पा के निवासियों पर कैसा अत्याचार किया है? वहाँ के निर्दोष नागरिकों के साथ कैसा पैशाचिक व्यवहार किया है ? क्या आप नहीं जानते कि अन्धे सैनिकों को खुली छुट्टी देदेने पर क्या होता है ? सभ्य नागरिकों को लूटना, खसोटना, मारना, काटना और उनकी बहू बेटियों का अपमान करना ऐसा कोई भी अत्याचार नहीं है जिससे वे हिकचते हों। ___ जब आपका एक स्थी मुझे और मेरी माता को भी दुर्भावना से पकड़ कर जंगल में ले गया तो न मालूम प्रजा की बहू बेटियों के साथ कैसा व्यवहार हुआ होगा ? मेरी माता वीराङ्गना थी, इस लिए सतीत्व की रक्षा के लिए उसने अपने प्राण त्याग दिए और उस रथी को सदा के लिए धार्मिक तथा सदाचारी बना दिया। जिस माता में इतने बलिदान की शक्ति न हो क्या उस पर भत्या
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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