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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग vvaian www VNAA किसी से भी पराजित नहीं होता । १५७ wwwww (७) जिस प्रकार पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र और कौमुदकी गदा से युक्त वासुदेव सदा ही अप्रतिहत और अखण्ड बलशाली होता हुआ शोभित होता है उसी प्रकार बहुश्रुत ज्ञानी भी अहिंसा, संयम और तप से शांभित होता 1 (८) जैसे हाथी, घोड़ा, रथ और प्यादे वाली चतुरंगिनी सेना से समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला, चारों दिशाओं का जय करने वाला, नवनिधि, चौदह रत्न और छः खण्ड पृथ्वी का अधिपति, महान् ऋद्धि का धारक, सब राजाओं में श्रेष्ठ चक्रवर्ती शोभित होता है वैसे ही चार गतियों का अन्त करने वाला तथा चौदह विद्या रूपी लब्धियों का स्वामी बहुश्रुत ज्ञानी साधु शोभित होता है । ( ६ ) जैसे एक हजार नेत्रों वाला, हाथ में वज्र धारण करने वाला, महाशक्तिशाली, पुर नामक दैत्य का नाश करने वाला देवों का अधिपति इन्द्र शोभित होता है उसी प्रकार बहुश्रुत ज्ञान रूपी सहस्र नेत्रों वाला, क्षमा रूपी वज्र को धारण करने वाला और मोहरूपी दैत्य का नाश करने वाला बहुश्रुत ज्ञानी साधु शोभित होता है । (१०) जिस प्रकार अन्धकार का नाश करने वाला, उगता हुआ सूर्य तेज से देदीप्यमान होता हुआ शोभित होता है उसी प्रकार आत्मज्ञान के तेज से दीप्त बहुश्रुत ज्ञानी शोभित होता है । ( ११ ) जैसे नक्षत्रों का स्वामी चन्द्रमा, ग्रह तथा नक्षत्रों से घिरा हुआ पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण शोभा से प्रकाशित होता है वैसे ही आत्मिक शीतलता से बहुश्रुत ज्ञानी शोभायमान होता है । (१२) जिस प्रकार विविध धान्यों से परिपूर्ण सुरक्षित भण्डार शोभित होता है उसी तरह अङ्ग, उपाङ्ग रूप शास्त्र ज्ञान से पूर्ण बहुश्रुत ज्ञानी शोभायमान होता है।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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