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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वेगवान् होने से उत्तम माना जाता है उसी तरह बहुश्रुत ज्ञानी भी उत्तम माना जाता है। १५६ Mar AAA w (३) जैसे शाकीर्ण जाति के उत्तम घोड़े पर चढ़ा हुआ दृढ़ पराक्रमी, शूरवीर पुरुष जब संग्राम में जाता है तब दोनों प्रकार से शोभित होता है अर्थात् आगे और पीछे से, बांई तरफ से और दाहिनी तरफ से अथवा वृद्ध पुरुषों द्वारा कहे गये आशीर्वाद रूप वचनों से और वन्दी जनों द्वारा कहे गये स्तुति रूप वचनों से तथा संग्राम के लिये बजाये जाने वाले बाजों के शब्दों से वह शूरवीर पुरुष शोभित होता है उसी तरह बहुश्रुत ज्ञानी दोनों प्रकार से अर्थात् आन्तरिक शान्ति और वाह्य आचरण से शोभित होता है, अथवा दिन और रात के दोनों समय में की जाने वाली स्वाध्याय के घोष (ध्वनि) से बहुश्रुत ज्ञानी शोभित होता है अथवा स्वपक्ष और परपक्ष के लोगों द्वारा 'यह बहुश्रुत ज्ञानी बहुत काल तक जीवित रहे जिससे प्रवचन की बहुत प्रभावना हो' इस प्रकार कहे जाने वाले आशीर्वादों से युक्त बहुश्रुत ज्ञानी शोभित होता है । ( ४ ) जिस प्रकार अनेक हथिनियों से सुरक्षित ६० वर्ष की अवस्था को प्राप्त हुआ बलवान् हाथी दूसरों से पराभूत नहीं हो सकता उसी प्रकार परिपक्व बुद्धि वाला बहुश्रुत ज्ञानी विचार एवं विवाद के अवसर पर किसी से अभिभूत नहीं होता । ( ५ ) जैसे तीच्ण सींगों वाला और अच्छी तरह भरी हुई ककुद् वाला तथा पुष्ट अंग वाला सांड पशुओं के टोले में शोभित होता है वैसे ही नैगमादिनय रूप तीक्ष्ण शृगों से परपक्ष को भेदन करने वाला और प्रतिभादि गुणों से युक्त बहुश्रुत ज्ञानी साधुओं के समूह में शोभित होता है। (६) जिस प्रकार अति उग्र तथा तीच्ण दांतों वाला पराक्रमी सिंह किसी से भी पराभूत नहीं होता वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानी भी
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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