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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पांचवां भाग १२५ दर्शन,चारित्र की शिक्षा देकर उनका पालन पोषण करने वाला हो। (११) गम्भीर- रोष अथोत क्रोध और तोष अथोत प्रसन्न अवस्था में भी जिसके दिल की बात को कोई न समझ सके। (१२) अविषादी- किसी भी प्रकार का उपसर्ग होने पर जो दीनता न दिखावे अर्थात् न घवरावे । (१३) उपशम लब्ध्यादियुक्त-उपशम लब्धि आदिलब्धियों को धारण करने वाला हो। जिस लब्धि अर्थात् शक्ति से दूसरे को शान्त कर दिया जाय उसे उपशम लब्धि कहते हैं। (१४) सूत्रार्थभाषक-आगमों के अर्थ को ठीक ठीक बताने वाला हो। (१५) स्वगुर्वनुज्ञातगुरुपद- अपने गुरु से जिसे गुरु बनने की अनुमति मिल गई हो। इन पन्द्रह में से जिस गुरु में जितने गुण कम हों वह उनकी अपेक्षा मध्यम या जघन्य गुरु कहा जाता है। (धर्मसग्रह अधिवार ३ श्लोक ८०-८४ ८५२- विनीत के पन्द्रह लक्षण गुरु आदि बड़े पुरुषों की सेवा शुश्रूषा करने वाला विनीत कहलाता है। विनीत के पन्द्रह लक्षण हैं (१) विनीत शिष्य नीचवृत्ति (नम्र) होता है अर्थात् विनीत शिष्य गरु आदि के सामने नम कर रहता है, नीचे आसन पर बैठता है, हाथ जोड़ता है और चरणों में धोक देता है। (२) प्रारम्भ किए हुए काम को नहीं छोड़ता, चञ्चलता नहीं करता, जल्दी जल्दी नहीं चलता किन्तु विनय पूर्वक धीरे धीरे चलता है। कई लोग एक जगह बैठे हुए भी हाथ पैर आदि शरीर के अगों को हिलाया करते हैं किन्तु विनीत शिष्य ऐसा नहीं करता। असत्य, कठोर और अविचारित वचन नहीं बोलता, एक काम
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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