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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग rom mamm ormmmmmmmmmmmon में अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण चौकड़ियों का क्षय हो जाता है इस लिए तीसरे भाग में ११४ प्रकृतियों की सत्ता रह जाती है । तीसरे भाग के अन्त में नपुंसकवेद काय हो जाने से चौथे भाग में ११३ रह जाती हैं। चौथे के अन्त में स्त्रीवेद का क्षय हो जाने से पॉचवें में ११२ । पाँचवें भाग के अन्त में हास्य, रति, अरति, भय, शोक और जुगुप्सा इन छ: प्रकृतियों का चय होजाता है, इस लिए छठे भाग में १०६ । छठे के अन्त में पुरुष वेद का क्षय होने से सातवें भाग में १०५।सातवेंके अन्त में संज्वलन क्रोध का क्षय होने से आठवें भाग में १०४ और पाठवें के अन्त में संज्वलन मान का क्षय हो जाने से नवें भाग में १०३ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। नवें भाग के अन्त में संज्वलन माया का क्षय हो जाता है। दसवें गुणस्थान में १०२ कर्मप्रकृतियों की सत्तारहती है। इस गणस्थान के अन्तिम समय में संज्वलन लोभ का अभाव हो जाता है इस लिए बारहवें गुणस्थान के दो भागों में से अर्थात् द्विचरम समय पर्यन्त (अन्तिम समय से एक समय पहले तक)१०१ कर्मप्रकृतियों की सत्ता हो सकती है। दूसरे भाग में अर्थात द्विचरम समय में निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियों का क्षय होजाता है। इस लिए बारहवेंगुणस्थान के अन्तिम समय में हह प्रकृतियाँ सत्ता में रह जाती हैं। ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण और पाँच अन्तराय इन १४ प्रकृतियों का क्षय बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में हो जाता है। तेरहवें गुणस्थान में ८५ कर्म प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। चौदहवें गुणस्थान में दिचरम समय तक अर्थात् अन्तिम समय से पहले समय तक ८५ कर्मप्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। विचरम समय में नीचे लिखी ७२ कर्ममकृतियों का क्षय हो जाता है- (१)
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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