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________________ mr marami orr rmanoran . marrian. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - सायिक सम्यक्त्व वाले चरमशरीरी जीवों के चौथे गुणस्थान से लेकर नवें के प्रथम भाग तक १३८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता होती है। अनन्तानुबन्धी चार कषाय,सम्यक्त्व मोहनीय,मिश्रमोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और तीन आयु इन दस प्रकृतियों की सत्ता उस जीव के नहीं होती। __जो जीव वर्तमान जन्म में ही क्षपक श्रेणी कर सकते हैं वे आपक या चरमशरीरी कहे जाते हैं। उनके मनुष्य आयुही सत्ता में रहती है दूसरी आयु नहीं। उन्हें भविष्य में भी दूसरी आय सत्ता में होने की सम्भावना नहीं रहती। इस लिए सपफ (चरमशरीरी) जीवों को मनुष्य आयु के सिवाय दूसरी आयु कीन स्वरूपसत्ता है और न सम्भवसत्ता । इसी अपेक्षा से चपक (चरम शरीरी जिन्हें क्षायिक सम्यक्त्व नहीं हुआ है) जीवों के १४५ कर्मप्रकृतियों की सत्ता कही गई है परन्तु क्षपक जीवों में जोक्षायिक सम्यक्त्व वाले हैं उनके अनन्तानुबन्धी आदि सात प्रकृतियों का भी क्षय हो जाता है इसी लिए क्षायिक सम्यक्त्व वाले क्षपक जीवों के १३८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता कही गई है। जो जीव वर्तमान जन्म में सपक श्रेणी नहीं कर सफते वे अचरम शरीरी कहलाते हैं। नवें गुणस्थान के नौ भागों में से प्रथम भाग में लपक श्रेणी वाले जीव के पूर्वोक्त १३८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता होती है। पहले भाग के अन्त में नीचे लिखी १६ प्रकृतियों का क्षय हो जाता है(१) स्थावर नामकर्म (२) सूक्ष्म नामकर्म (३) तिर्यञ्च गति (४) तिर्यवानपर्वी (५)नरकगति (६) नरकानपूर्वी (७)आतप नामकर्म (८) उद्योत नामकर्म (8) निद्रानिद्रा (१०) प्रचलाप्रचला (११) स्त्यानगृद्धि (१२) एकेन्द्रिय (१३)बेइन्द्रिय (१४) तेइन्द्रिय (१५) चउरिन्द्रिय और (१६) साधारण नामकर्म, इस लिए दूसरे भाग में १२२ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। दूसरे भाग के अन्तिम समय
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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