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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग जीव भी समाप्त नहीं होते। ___ शब-यदि सव भव्य मोच नहीं जाएंगे तो मोच न जानेवाले भव्य तथा प्रभव्य जीवों में क्या मेद है ? ' समाधान-जो मोक्ष जाएंगे वेही भव्य नहीं कहे जाते, किन्तु जिनमें मोक्ष जाने की योग्यता है, वे भव्य कहे जाते हैं। अभव्य जीवों में मोक्ष जाने की योग्यता ही नहीं होती। योग्यता होने पर भी कारणसामग्री न मिलने से बहुत सी वस्तुएं उस रूप में परिणतः नहीं होतीं। जैसे दण्ड के आकार में परिणत होने की योग्यता होने पर भी, बहुत से वृक्ष उस रूप में परिणत नहीं होते। इसी प्रकार जो जीव मोक्ष न जाने पर भी मोक्ष जाने की योग्यता रखते हैं, वे भव्य कहे जाते हैं। अभन्यों में तो मोक्ष जाने की योग्यता ही नहीं होती। जैसे पानी में दण्ड बनने की योग्यता नहीं है। अथवा जैसे मिले हुए सोने और पत्थर में अलग अलग होने की योग्यता होने पर भी सभी अलग अलग नहीं होते किन्तु जिन्हें अलग करने की सामग्री प्राप्त हो जाती है, वे ही अलग अलग होते हैं। यह निश्चय पूर्वक कहां जा सकता है कि वे ही अलग अलग होते हैं, जिन में योग्यता होती है। इसी प्रकार सभी भव्यों में योग्यता होने पर भी सामग्री न मिलने से कर्ममल दूर नहीं होता । अभव्यों में कर्ममल दूर करने की योग्यता नहीं है। ' शङ्का-मोक्ष गया हुआ जीव वापिस नहीं लौटता, यह कहना ठीक नहीं है। मोक्ष नित्य नहीं है, क्योंकि कृतक है, प्रयत्न के बाद प्राप्त होता है, प्रादि वाला है। जैसे पड़ा। समाधान-जो कृतक, प्रयत्न के बाद उत्पन्न होने वाला और आदि वाला है वह नाश वाला है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रध्वंसामाव कतकादि वाला होने पर भी नष्ट नहीं होता। प्रध्वंसाभाव को प्रभाव स्वरूप बताकर दृष्टान्त में वैषम्य बताना ठीक साल
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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