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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सोने में लगा हुआ मैल अनादि होने पर भी आग से तपाना आदि कारणों से छूट जाता है । उसी प्रकार जीव और कर्मों का सम्बन्ध भी तप और संयम रूप उपायों से छूट जाता है। इस लिए मोक्ष का अभाव नहीं हो सकता। ____जीव और कर्मों का परस्पर सम्बन्ध अभव्यों में अनादि और अनन्त तथा भव्यों में अनादि सान्त है। ___ शङ्का-समी जीव एक सरीखे हैं। फिर उनमें भव्य और अभव्य का मेद क्यों होता है? समाधान- भन्यों में स्वभाव से ही मुक्ति की योग्यता होती है और अभव्यों में नहीं। शङ्का-मोक्ष गया हुआ जीव वापिस नहीं लौटता और छ महीनों में एक जीव अवश्य मोक्ष जाता है। ऐसा मानने पर कमीन कमी संसार भव्यों से खाली हो जायगा, क्योंकि काल अनन्त है ? , समाधान-यह ठीक नहीं है, क्योंकि भव्य जीव अनन्तानन्त हैं। जैसे भविष्यत्काल और आकाश । जो वस्तु अनन्तानन्त होती है वह प्रतिक्षण कम होने पर भी खतम नहीं होती, जैसे प्रत्येक क्षण में वर्तमान रूप से परिणत होता हुआ भविष्यत्काल । अथवा आकाश के एक एक प्रदेश को बुद्धि द्वारा कम करते रहने पर भी वह कमी समास नहीं होता । इसी प्रकार भन्यों का उच्छेद नहीं हो सकता। भूत और भविष्यत्काल परापर है। इस लिए यह कहा जा सकता है कि जितने जीव भूतकाल में मोक्षगए हैं उतने ही भविष्य में जाएंगे। भूतकाल में अब तक एक निगोद का अनन्तवाँ भाग जीव मोक्ष गए हैं, इस लिए भविष्य में भी उतने ही जाएंगे। न्यून या अधिक नहीं जा सकते । इस प्रकार भी भव्यों का उच्छेद नहीं हो सकता, क्योंकि भव्य जीव काल और आकाश की तरह अनन्त हैं। जिस तरह काल और आकाश खतम नहीं होते, उसी तरह भव्य
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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