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________________ १२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला का पालन नहीं हो सकता । इस विषय को लेकर दशवेकालिक. t सूत्र के दूसरे अध्ययन में ग्यारह गाथाए आई हैं उनका भावार्थ नीचे दिया जाता है (१) जो पुरुष काम भोगों से निवृत्त नहीं हुआ है, वह पुरुष पद पक्ष में संकल्प विकल्पों से खेदखिन्न होता हुआ किस प्रकार संयम का पालन कर सकता है ! अपितु संयम का पालन नहीं कर सकता । जिसने द्रव्यलिङ्ग धारण कर रक्खा है और द्रव्य - क्रियाए भी कर रहा है किन्तु जिसकी अन्तरङ्ग श्रात्मा विषयों की ओर ही लगी हुई है वह वास्तव में श्रमण (साधु) नहीं है। (२) वस्त्र, गन्ध, अलकार ( आभूषण ) स्त्रियाँ तथा शय्या श्रादि को जो पुरुष भोगता तो नहीं है लेकिन उक्त पदार्थ जिसके वश में भी नहीं हैं, वह वास्तव में त्यागी नहीं कहा जाता, अर्था जिस पुरुष के पास उक्त पदार्थ नहीं हैं किन्तु उनको भोगने की इच्छा बनी हुई है, ऐसी दशा में यद्यपि वह उनका भोग नहीं करता है तथापि वह त्यागी नहीं कहा जा सकता क्योंकि इच्छा बनी रहने के कारण उसके चित्त में नाना प्रकार के संकल्प विकल्प पैदा होते रहते हैं अर्थात् सदा ध्यान बना रहता है। इस लिए द्रव्य - लिङ्ग धारण किए जाने पर भी वह त्यागी नहीं कहा जा सकता । (३) जो पुरुष प्रिय और कमनीय भोगों के मिलने पर भी उन्हें. पीठ दे देता है तथा स्वाधीन भोगों को छोड़ देता है, वास्तव में वही पुरुष त्यागी कहा जाता है । जो भोग इन्द्रियों को प्रिय नहीं हैं, या प्रिय हैं परन्तु स्वाधीन नहीं हैं, या स्वाधीन भी हैं किन्तु किसी समय प्राप्त नहीं होते तो उनको मनुष्य स्वयं ही नहीं भोगता या नहीं भोग सकता । लेकिन जो इन्द्रियों को प्रिय हैं, स्वाधीन हैं और प्राप्त भी हैं उन्हें जो छोड़ता है, उनसे विमुख रहता है, वास्तव में सच्चा त्यागी वही 4
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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