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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सप्रह, चौथा भाग ४४१ देस। वह सुपुमा को आगे करके तलवार घुपाता हुआ जल्दी २ चला। इतने में रक्षकों ने धन्ना सेठ से कहा-हमें भूख और प्यास लगी है। अपना नगर बहुत दूर छूट गया है। यह अटवी बहुत विकट है। भयकर तलवार को घुपाता हुमा चोर सेनापति भी खतरनाक मालूम पड़ रहा है। एक सुपुमा को छुड़ाने के लिए सभी का जीवन मन्दह में डालना ठीक नहीं है। नीति में भी कहा है त्यजेदेकं अलरयाथै, ग्रामस्याथै कुलं त्यजेत् । ग्रामं जनपदस्थार्थ, यात्मायें पृथिवीं त्यजेत् ॥ अर्थात्-कुल की रक्षा के लिए एक को छोड देना चाहिए । ग्राम की रना के लिए कुल को छोड़ देना चाहिए । देश की रक्ष के लिए ग्राम को छोड़ देना चाहिए और आत्मा की रक्षा अर्थात् श्रान्मा को पतन से बचाने के लिये पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए। सेठ ने उत्तर दिया-तुम लोग अपने घर पर चले जाओ। मैं अपनी पुत्री को लेकर पाऊंगा। यह कह कर धना सेठ अपने पुत्रों के साथ आगे वहा । मरे लोग भी लज्जित होकर सारा धन लेकर उसके साथ हो लिये ।वरितगति से चलते हुए वे शीघ्र चिलातीपुत्र के ममीप पहुँच गये। चिलातीपुत्र ने सोचा- गे मेरे पास पहुंच गए हैं। इस लिए सामा को जल छीन लेंगे। अगर यह मेरे पास नहीं रहती तो इनके पाम भी न रहनी चाहिए । यह सोच कर उमने मुपुमा का सिर काट लिया। घड़ को वहीं छोड़ कर वह आगे चला गया। इतने में सेठ और उमके लड़के वहाँ भा पहुँचे । विना सिर के धड़ को देख उन्हें बड़ा दुःख हुआ। शव को लेकर भूख और प्यास से व्याकुल होते हुए वे एक वृक्ष की छाया में बैठ गए । सेठ ने अपने पुत्रों से कहा--तुम लोगों को बहुत जोर से भूख लगी है। ऐसी दशा में एक पैर भी आगे बढ़ना कठिन है । मैं बूढ़ा हो गया
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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