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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सप्रह, चौथा भाग (१०) हरिपेण (११) जय (१२) ब्रह्मदत्त । चक्रवर्तियों का भोजन - चक्रवतियों का भोजन कल्याण भोजन कहलाता है। उसके विषय में ऐसा कथन पाता है-रोग रहित एक लाख गायों का दूध निकाल कर वह दूध पचास हजार गायों को पिला दिया जाय। फिर उन पचास हजार गायों का दूध निकाल कर पच्चीस हजार गायों को पिला दिया जाय । इस प्रकार क्रमशः करते हुए अन्त में वह दूध एक गाय को पिला दिया जाय । फिर उस एक गाय का दूध निकाल कर उत्तम जाति के चावल डाल कर उसकी खीर बनाई जाय और उत्तमोत्तम पदार्थ डाल कर उसे संस्कारित किया जाय । ऐसी खीर का भोजन कल्याण भोजन कहलाता है। चक्रवर्ती और उसकी पटरानी के अतिरिक्त यदि दसरा कोई व्यक्ति उस खीर का भोजन कर ले तो वह उसको पचा नहीं 'सकता और उससे उसको महान उन्माद पैदा हो जाता है।' चक्रवर्ती का काकिणीरत-प्रत्येक चक्रवर्ती के पास एक एक काकिणी रत्न होता है। वह अष्टसुवर्ण परिमाण होता है। सुवर्ण परिमाण इस प्रकार बताया गया है- चार कोमल तणों की एक सफेद सरसों होती है। सोलह सफेद सरसों का एक धान्यमाषफल कहलाता है। दो धान्यमापफलों की एक गुजा (चिरमी) होती है। पाँच गुजाओं (चिरमियों) का एक कर्ममाप होता है और सोलह कर्ममापों का एक सुवर्ण होता है। सब चक्रवर्तियों के काकिणी रत्नों का परिमाण एक समान होता है। वह रत्न छः खण्ड, बारह कोटि (धार) तथा आठ कोण वाला होता है । इसका श्राकार लुहार के एरण सरीखा होता है। (ठाणाग सूत्र ठाणा सत्र ६३३) चक्रवर्तीयों की गति-बारह चक्रवतियों में से दस चक्रवर्ति मोक्ष में गए हैं। सुभूम और ब्रह्मदत्त दोनों चक्रवर्ती काम भोगों में फंसे रहने के कारण सातनी नरक में गए । (ठगांग र उ०४ सू.-११२)
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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