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________________ आभार प्रदर्शन जैन धर्म दिवाकर पण्डितप्रवर उपाध्याय श्री आत्माराम जी महाराज ने चौथे भाग की पाण्डुलिपि को आद्योपान्त सुन कर आवश्यक संशोधन करवाया है। इसी प्रकार पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज के सुशिष्य मुनि श्रीपन्नालालजी महाराज ने भीबहुत परिश्रम पूर्वक पुस्तक का आद्योपान्त ध्यान से निरीक्षण किया है। उपरोक्त दोनों मुनिवरों की अमूल्य सहायता प्रथम भागसे लेकर अब तक बराबर मिल रही है। उनके उपकार के लिए कृतज्ञतापूर्ण हृदय से हम कामना करते हैं कि उनका सहयोग सदा इसी प्रकार मिलता रहे। परम प्रतापी जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहरलाल जी महाराज के बीकानेरयामीनासर विराजने से भी हमें बहुत लाम हुआ है। पुस्तक छपते समय या लिखते समय को भी समस्या उपस्थित हुई, उनके पास जाने से सुलझगई।मधुसाध्वी के आचार से सम्बन्ध रखने वाली बहुत सी बातों का स्पष्टीकरण उन्हीं की कृपा से हुआ है। पूज्य भी के परम शिष्य पडितरत्न युवाचार्य श्री गणेशीलालजी महारान, पण्डित मुनि श्री सिरेमलजी महाराज व पण्डितरत्न मुनि श्री नवरीमलजी महाराज ने भी आवश्यकता पड़ने पर अपना अमूल्य समय दिया है। इस उपकार के लिए हम उपरोक्त मुनिवरों के सदा आभारी रहेगे। श्री श्वे स्थानकवासी जैन कान्फरेंस, बम्बई को पुस्तक की पाण्डुलिपि मेनी गई थी। इसे प्रकाशित करने की अनुमति देने के लिए हम कान्फरेंस के भी आभारी है। पण्डित श्री सुबोधनारायण झा,व्याकरणाचार्य तथा पं० हनुमत्प्रसादनी साहित्यशास्त्री बोल संग्रह विभाग में कार्य कर रहे हैं। इन्होंने पुस्तक के लिए काफीपरिश्रम उठाया है। इसके लिए दोनों महानुभावों को हार्दिक धन्यवाद है। (हितीयावृत्ति के सम्बन्ध में) परम प्रतापी जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहरलालजी म. सा. के सुशिष्य शास्त्रममंश पडित मुनि श्री पन्नालालजी म. सा. ने इस भाग का दुबारा सूक्ष्मनिरीक्षण करके सशोधन योग्य स्थलों के लिए उचित परामर्श दिया है। अतः हम आपके आभारी हैं। पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. की सम्प्रदाय के वयोवृद्ध मुनि श्री सुनानमलजी म. सा. के सुशिष्य पडित मुनि श्री लक्ष्मीचन्द्रबी म. सा. ने इसकी प्रथमावृचि की अपी हुई पुस्तक का श्रादयोपान्त उपयोग पूर्वक अवलोकन करके कितनेक शकास्थलों के लिए सूचना की थी। उनका यथास्थान सशोधन कर दिया गया है। अतः हम उक्त मुनि श्री के आभारी हैं। विक्रम संवत् २००७ पुस्तक प्रकाशक समिति भाषाढ शुक्ला तृतीया । वीर संवत् २४७६ ऊन प्रेस, बीकानेर
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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