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________________ २५२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला } हरण करके उसके साथ विवाह कर लिया है । वासुदेव ने सेना के साथ विद्याधरों पर चढ़ाई कर दी। दोनों ओर भीषण संग्राम खड़ा हो गया । इतने में शम्ब अपना असली रूप धारण कर अपने पिता कृष्ण वासुदेव के पैरों में गिर पड़ा और सारा हाल ठीक ठीक कह दिया । युद्ध बन्द हो गया। कृष्ण महाराज ने कमलामेला सागरचन्द्र को दे दी। सभी अपने अपने स्थान को चले गए । सागरचन्द्र का शम्ब को कमलामेला समझना अननुयोग है। शम्ब' द्वारा 'मैं कमलामेला नहीं हूँ' यह कहा जाना अनुयोग है । (११) शम्ब के साहस का उदाहरण -- शम्य की माँ का नाम जाम्बवती था । कृष्ण तथा दूसरे लोग उसे नित्यप्रति कहा करते थे कि तुम्हारा पुत्र सभी सखियों के मन्दिरों में जाता है । जाम्बवती ने कृष्ण से कहा- मैंने तो अपने पुत्र के साथ एक भी सखी नहीं देखी । कृष्ण ने उत्तर दिया- आज मेरे साथ चलना, तब बताऊँगा । कृष्ण ने जाम्बवती को अहीरनी के कपड़े पहना दिए । वह बहुत ही सुन्दर अहीरनी दीखने लगी । कृष्ण ने उसके सिर पर दही का घड़ा रख कर उसे आगे आगे खाना किया और स्वयं अहीर के कपड़े पहन कर हाथ में डण्डा लेकर उसके पीछे पीछे हो लिया । वे दोनों बाजार में पहुँच गए। शम्ब ने जाम्बवती को देखा। उसे सुन्दर अहीरनी समझ कर उसने कहा- मेरे घर चलो ! तुम्हारे सारे दही का जितना मूल्य कहोगी, चुका दूँगा | आगे आगे वह हो लिया, उसके पीछे अहीरनी थी और सब से पीछे अहीर | 1 किसी सूने देवल में जाकर शम्ब ने कहा--दही अन्दर रख आयो । श्रीरंनी ने उसका बुरा अभिप्राय समझ कर उत्तर दिया- मैं अन्दर नहीं जाऊँगी । यहीं से दही ले लो और कीमत दे दो । 'मैं जबर्दस्ती मन्दर ले चलूँगा ।' यह कह कर शम्प ने उसकी एक चाँह पकड़ ली । अहीर दौड़ कर दूसरी बाँह पकड़ कर खींचने लगा । } ܕ 1
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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