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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २५१ नारदजी वहाँ से सीधे कमलामेला के पास गए। उसने भी जब उसी तरह आश्चर्य के विषय में पूछो तो नारदजी बोले-मैंने.. दो आश्चर्य देखे हैं । सागरचन्द्र का रूप और नमासेन का कुरूप। कमलामेला नभासेन से विरत और सागरचन्द्र में अनुरत हो गई । उसे प्राप्त करने के लिए व्याकुल होती हुई कमलामेला को देख कर नारद ने कहा-बेटी! धैर्य रखो! तुम्हारा मनोरथ शीघ पूरा होने वाला है । यह कह कर नारदजी सागरचन्द्र के पास पाए और उसे यह कह कर चले गए कि कमलामेला भी तुम्हें चाहती है। सागरचन्द्र की उस अवस्था को देख कर उसके माता पिता तथा कुटुम्ब के सभी लोग चिन्तित रहने लगे । एक दिन उसके पास शम्पकुमार पाया। पीछे से आकर उसने सागरचन्द्र की आखें चन्द कर ली ! सागरचन्द्र के मुंह से निकला-कमलामेला आगई ! शम्ब ने उत्तर दिया-मैं कमलामेल हूँ, कमलामेला नहीं । सागर ने कहा-ठीक है, तुम्हीं कमला का मेल कराने वाले हो । तुम्हारे सिवाय कौन ऐसा कर सकता है ? दूसरे यादव कुमारों ने भी शम्ब को मदिरा पिला कर उससे कमलामेला को लाने की प्रतिज्ञा करवा ली। नशा उतरने पर शम्ब ने सोचा-मैंने बड़ी कठोर प्रतिज्ञा कर ली। इसे कैसे पूरा किया जायगा ? उसने प्रद्युम्नकुमार से प्रज्ञप्ति नाम की विद्या मांग ली। विवाह के दिन एक सुरङ्ग खोद कर वह कमलामेला को उस के पिता के घर से एक उद्यान में ले आया और नारद को साक्षी करके उसका विवाह सागरचन्द्र के साथ कर दिया। सभी लोग विद्याधरों का रूप धारण करके उसी उद्यान में क्रीड़ाएं करने लगे। कमलामेला के पिता और श्वसुर के आदमियों ने उसे खोजना शुरू किया और विद्याधरी के रूप में उसे उद्यान में देखा। उन्होंने वासुदेव के पास जाकर कहा कि विद्याधरों ने कमलामेला का अप
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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