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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग बारहवां बोल संग्रह 1 २१५ ७७७ - बारह उपांग श्रङ्गों के विषयों को स्पष्ट करने के लिए श्रुतकेवली या पूर्वधर श्राचार्यों द्वारा रचे गए श्रागम उपांग कहलाते हैं । अंगों की तरह उपांग भी बारह हैं । (१) उबवाई सूत्र यह सूत्र पहला उपाङ्ग है। यह पहले अङ्ग श्राचाराङ्ग का उपाङ्ग माना जाता है। अंग तथा उपाङ्ग प्रायः सभी सूत्रों में जहाँ नगर, उद्यान, यक्ष, राजा, रानी, समवसरण, प्रजा, सेठ आदि का दर्शनों के लिए जाना तथा परिपद आदि का वर्णन आता है वहाँ उबवाई सूत्र की भलामण दी जाती है, इस लिए यह सूत्र बहुत महत्व रखता है। इसके उत्तरार्द्ध में जीव किस करणी से किस गति में उत्पन्न होता है, नरक तथा देवलोक में जीव दस हजार वर्ष से लेकर तेतीस सागरोपम तक की आयुष्य किस करणी से प्राप्त करता है इत्यादि विस्तार पूर्वक बताया गया है। यह उत्कालिक सूत्र है। इसमें नीचे लिखे विषय वर्णित हैं (१) समवसरणाधिकार - चम्मा नगरी, पूर्णभद्र यक्ष, पूर्णभद्र चैत्य, अशोकवृच, पृथ्वीशिला, कोणिक राजा, धारिणी रानी तथा समाचार देने वाले व्यक्ति का वर्णन । भगवान् महावीर स्वामी के गुण । सम्पूर्ण शरीर तथा नख से शिखा तक प्रत्येक अङ्ग का वर्णन |
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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