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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, चौथा भाग २१३ ।। तेतीस बोल तक एक एक पदार्थ का संग्रह इस अध्ययन में किया गया है। साधु को कौनसा आहार कल्पता है और कौनसा नहीं, फितने पात्र और वस्त्र से अधिक नहीं रखना चाहिए इत्यादि वातों का कथन भी इस अध्ययन में दिया गया है। इस व्रत की रक्षा के लिए पॉच भावनाएँ वतलाई गई हैं। उपरहार करते हुए बतलाया गया है कि उपरोक्त पाँच संवर द्वारों की सम्यक्प्रकार आगधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। (११)विपाक सूत्र ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों के शुभाशुभ परिणाम विपाक कहलाते हैं। ऐसे कर्मविपाक का वर्णन जिस सूत्र में हो वह विपाक सूत्र कहलाता है। यह ग्यारहवॉ अङ्गमत्र है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। ' पहला श्रुतस्कन्ध इसका नाम दुःखविपाक है । इसमें दस अध्ययन हैं। इन में दस व्यक्तियों की कथाएँ हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) मृगापुत्र (२) उमितकुमार (३) अभन्नसेन चोर सेनापति (४) शकटकुमार (५) वृहस्पति कुमार (६)नन्दीवर्द्धन (७) उम्वरदत्त कुमार (८) सौर्यदत्त कुमार (6) देवदत्ता रानी (१०) अंजू कुमारी । इन कथाओं में यह बतलाया गया है कि इन व्यक्तियों ने पूर्व भव में किस किस प्रकार और कैसे कैसे पाप कर्म उपार्जन किए, जिससे आगामी भव में उन्हें किस प्रकार दुःखी होना पड़ा नरक और तिर्यञ्च के अनेक भवों में दुःखमय कर्मविपाकों को भोगने के पश्चात् मोक्ष प्राप्त करेंगे। पाप कार्य करते समय तो अज्ञानतावश जीव प्रसन्न होता है और वे पापकारी कार्य सुखदायी प्रतीत होते हैं किन्तु उनका परिणाम कितना दुःखदायी होता है और जीव को कितने दुःख उठाने पड़ते हैं इन बातों का साक्षात् चित्र इन कथाओं में खींचा गया है।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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