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________________ १६६ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला मरण आदि के विषय में प्रश्न, क्या देव रूपी और रूपी पदार्थ की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? इत्यादि प्रश्नोतर | (३) उ०- क्या शैलेशी अवस्था प्राप्त अनगार एजना ( कंपना ) श्रादि क्रिया करता है ! एजना के पाँच भेद । 'चलना' के तीन भेद शरीर चलना, इन्द्रिय चलना और योग चलना । चलना के कारण, संयोग आदि का फल | " (४) उ० - जीव प्राणातिपातादि रूप क्रिया क्या स्पृष्ट करता है या अस्पृष्ट १ २४ दण्डक में यही प्रश्न | क्या दुःख और वेदना आत्मकृत, परकृत या उभयकृत है ? जीव आत्मकृत दुःखादि का ही वेदन करता है, परकृत का नहीं । (५) उ० - ईशानेन्द्र की सभा की वक्तव्यता । 3 (६) उ० – रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में पृथ्वीकाय के जीव मरण समुद्घात करके सौधर्म आदि देवलोकों में उत्पन्न होते हैं तो उत्पत्ति के पश्चात् और पहले भी वे आहार ग्रहण करते हैं । (७) उ०- सौधर्म देवलोक में पृथ्वीकायिक जीव मरण समुद्घात करके रत्नप्रभा यावत् ईषत्प्राग्भारा आदि पृथ्वियों में उत्पन्न होते हैं । वे उत्पत्ति के पहले और पश्चात् दोनों तरह से आहार के I पुद्गल ग्रहण करते हैं । (८) उ०- कायिक जीव रत्नप्रभा से सौधर्म देवलोक में काय रूप से उत्पन्न होते हैं' इत्यादि प्रश्नोत्तर | ( 8 ) उ०- कायिक जीव के सौधर्म देवलोक से रत्नप्रभा के घनोदधि वलय में अपकाय रूप से उत्पन्न होने की वक्तव्यता | (१०-११) उ० - वायुकाय जीवों की रत्नप्रभा से सौधर्म देवलोक में और सौधर्म देवलोक से रत्नप्रभा में उत्पत्ति के समय श्राहारादि की वक्तव्यता | (१२-१७) उ० – बारहवे से सतरहवं उद्द ेशे तक प्रत्येक में ५
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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