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________________ अकाराधनुक्रमणिका बोलन० . | मोल नं० .५ अपित स्वामी ५२ । ७७२ अप्राप्य पाते ग्यारह १७ ७७५ अग्निभूवि गणघर ३१८०१ अमावास्था बारह ३०३ ८०६ अपाती प्रकृतियों ३५० / ७८२ अरिहन्त के गुण २६० ७७६ अङ्ग ग्यारह ६६ / ७७६ अजुन माती १६६ ७७५ अचल भाता ५४ ! ८१२ अर्जुन माली (निर्जरा ८०८ अच्युत्त देवलोक ३२३ | भावना) १८६ ७७६ अणुचरोयवाई २०२७८३ अवगाहनाचक्रवर्तियों की२६३ ८०६ अध्रुवबन्धिनीप्रकृतियाँ ३३७ / ८०८ अवगाहना देवों की ३२९ ८०६ अधु षसत्ताक प्रकृतियॉ३४३ / ४८० अषगह के बारह भेद २६९ ८०६ अध्रु बोदया प्रकृतियाँ ३४१ ८०८ अवधिज्ञान देषों में ३३० ७८० अननुयोग के दृष्टान्त २३८ १२ अशरण भावना ३५ ८१२ अनाथी मुनि (अशरण १२ अशुचि भावना ३६५ भावना) ३७३/१६ असंखय अध्ययन की ८०६ अनादि अनन्तप्रकृतिया ३३८ तेरह गाथाएँ ४०६ ८०६ अनादि सान्त प्रकृविया २३८/८ असरयामषा भाषा के । ८१२ अनित्य भावना ३५६ बारह भद २७२ ७७६ अनुत्तरोपपातिक २०२ १२ अनुप्रेक्षा बारह १५/ |७४ आगामी उत्सर्पिणी के ८०८ अनुभाव देवों में ३३६ चक्रवर्ती बारह २६५ ७७६ अन्तकदशांग १६५१८०७ भागार कासग के ३१६ ७७६ अन्तगडदसांग १६५/०६ आचारांग ६७ ८०८ अन्तरकाल देवों में ३३३७६३ आजीवक के उपासक २७६ ७७० अन्त्य काश्यप ८०८ आणत देवलोक ३२३ ८१२ अन्यत्व भावना ३६४ | ०८ पारण देवलोक ३२३ ८०६ अपरावर्तमान प्रकृतियाँ ३५१ / ७७३ श्रारंम और परिमह को ७६१ अप्रशस्त मन विनय छोड़े विना ग्यारह बातों की के पारह भेद २७ प्राप्ति नहीं हो सकती १७
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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