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________________ ७२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला चाहिए। (७)उ०-पादपोपगमन मरण । (८)उकालपर्याय से तीनों मरणों की विधि । नवाँ अध्ययन-इसमें चारउद्देशे हैं:- . (१)उ०-भगवान् महावीर स्वामी की विहारचर्या का वर्णन किया है जैसे कि तेरह महीने के पश्चात् देवघ्य वख का परित्याग, क्षुद्र जीवों द्वारा दिए गए अनेक कष्टों का सहन, छ: काय की रक्षा, उस स्थावर जीवों की गतागत पर विचार, कभी भी हिंसा कान करना, शुद्ध आहार का ग्रहण, परवस्त्र और परपात्र का अग्रहण, शीत और उष्ण परिसह का सहन, ईयो समिति और भाषासमिति पर अत्यन्त विवेक इत्यादि विषय वर्णित किए गये हैं। . (२)उ०-- बस्विविषय। श्रावेसन (शून्यगृह), सभा, प्रपा, पणीय शाला, सराय, पाराम (पाग), नगर, श्मशान, सूने घर, वृक्ष के मूल इत्यादि स्थानों में रात दिन यतना करते हुए अप्रमत्तभाव से विचरते थे। निद्रा से अभिभूत न होते हुए रात्रि को खड़े रह कर ध्यान करते थे। उक्त वस्तियों में अनेक प्रकार के सादिद्वारा किए गए कष्टों को सहन करते थे। भगवान् को अनेक पुरुष नाना प्रकार से पीड़ित करते थे। भगवान् मौन वृत्ति से प्रात्मध्यान में निमग्न रहते थे।कारणवशात् मैं भिन्नु हूँ इस प्रकार से बोलते थे। शीत आदि परिपह का सहन करते हुए विचरते थे। इस प्रकार वर्णन किया गया है। (३)उ०-परिषह सहन । तणस्पर्श, शीतस्पर्श, उष्णस्पर्श, दंशमशक स्पर्श, आक्रोश, वध इत्यादि परिषहों को सहन करते हुए विचरते थे। लाट देश की वजभूमि में नाना प्रकार के परिपहों को सहन किया। कुत्तों के परिवहों को सहन करते हुए तथा अनायों द्वारा केश लुचन होने पर भी ध्यान से विचलितन होतेथे। कठोर वचन के परिषह को सहन करते हुए शूरवीर हाथी की तरह परि
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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