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________________ श्री सेठिया जैन पन्थमाला दो प्रकार का होता है । एक या अनेक शस्त्रादि पुद्गलों के निमित्त से, विषमिश्रित अनादि रूप पुद्गलपरिणाम से तथा .. शीतोष्णादि रूप स्वाभाविक पुद्गलपरिणाम से जीव आयु का अनुभव करता है, क्योंकि इनसे आयु की अपवर्तना होती है। यह परतः अनुभाव हुआ। नरकादि आयुकर्म के उदय से जो आयु का भोग होता है वह स्वतः अनुभाव समझना चाहिये। ___ आयु दो प्रकार की होती है-अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय। बाह्य शस्त्रादि निमित्त पाकर जो आयु स्थिति पूर्ण होने के पहले ही शीघ्रता से भोग ली जाती है वह अपवर्तनीय आय है। जो आयु अपनी पूरी स्थिति भोग कर ही समाप्त होती है, वीच में नहीं टूटती वह अनपवत्तेनीय आयु है। अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय आयु का बन्ध स्वाभाविक नहीं है। यह परिणामों के तारतम्य पर अवलम्बित है । भावी जन्म का आयु वतमान जन्म में बंधता है। आयु बन्ध के समय यदि परिणाम मन्द हों तो आयु का बन्ध शिथिल होता है । इससे निमित्त पाने पर बन्ध-काल की कालमयोदा घट जाती है। इसके विपरीत यदि आयुबन्ध के समय परिणाम तीव्र हों तो आयु का बन्ध गाढ़ होता है । वन्ध के गाढ़ होने से निमित्त मिलने पर भी बन्ध-काल की कालमर्यादा कम नहीं होती और आयु एक साथ नहीं भोगा जाता । अपवर्तनीय आयु सोपक्रम होती है अर्थात् इसमें विष शस्त्रादि का निमित्त अवश्य प्राप्त होता है और उस निमित्त को पाकर जीव नियत समय के पूर्व ही मर जाता है। अनपवर्तनीय आयु सोपक्रम और निरुपक्रम दोनों प्रकार की होती है। सोपक्रम आयु वाले को अकालमृत्यु योग्य विष शस्त्रादि का संयोग होता है और निरुपक्रम आयु वाले को नहीं होता । विष शस्त्र आदि निमित्त का प्राप्त होना
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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