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________________ - श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला न पचने से अजीर्ण होगया। यहाँ आहार रूप पुद्गलों के परिणाम से असातावेदनीय का उदय जानना चाहिये । इसी प्रकार मदिरापान से ज्ञानावरणीय का उदय होता है । स्वाभाविक पुद्गलपरिणाम, जैसे शीत उष्ण घाम आदि से भी असाता वेदनीयादि कर्म का उदय होता है। पनवणासूत्र के २३वेंपद में ज्ञानावरणीय का दस प्रकार का जो अनुभाव बताया है वह स्वतः और परतः अर्थात् निरपेक्ष और सापेक्ष दो तरह का होता है । पुद्गल और पुद्गलपरिणाम की अपेक्षा प्राप्त अनुभाव सापेक्ष है । कोई व्यक्ति किसी को चोट पहुँचाने के लिए एक या अनेक पुद्गल, जैसे पत्थर, ढेला या शस्त्र फेंकता है। इनकी चोट से उसके उपयोग रूप ज्ञान परिणति का घात होता है । यहाँपुद्गल की अपेक्षा ज्ञानावरणीय का उदय समझना चाहिए। एक व्यक्ति भोजन करता है, उसका परिणमन सम्यक प्रकार न होने से वह व्यक्ति दुःख का अनुभव करता है और दुःख की अधिकता से ज्ञानशक्ति पर बुरा असर होता है। यहाँ पुद्गलपरिणाम की अपेक्षा ज्ञानावरणीय का उदय है । शीत, उष्ण, घाम आदि स्वाभाविक पुद्गलपरिणाम से जीव की इन्द्रियों का घात होता है और उससे ज्ञान का हनन होता है। यहाँ स्वाभाविक पुद्गलपरिणाम की अपेक्षा ज्ञानावरणीय का उदय जानना चाहिए। इस प्रकार पुद्गल, पुद्गलपरिणाम और स्वाभाविक पुद्गलपरिणाम की अपेक्षा ज्ञानशक्ति का घात होता है और जीव ज्ञातव्य वस्तु का ज्ञान नहीं कर पाता। विपाकोन्मुख ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से, वाह्य निमित्त की अपेक्षा किये बिना ही, जीव ज्ञातव्य वस्तु को नहीं जानता है, जानने की इच्छा रखते हुए भी नहीं जान पाता है, एक बार जानकर भूल जाने से दूसरीबारनहीं जानता है। यहाँ तक
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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