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________________ १२ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जगह धर्म का प्रचार करता है वही गणी कहा जाता है। गणी में जो गुण होने चाहिएं उन्हें गणिसम्पदा कहते हैं । इन गुणों का धारक ही गणीपद के योग्य होता है। वे सम्पदाएं आठ हैं. (१) आचार सम्पदा (२)श्रुत सम्पदा (३)शरीर सम्पदा (४) वचन सम्पदा (५) वाचना सम्पदा (६) मति सम्पदा (७) प्रयोग मति सम्पदा (८) संग्रहपरिज्ञा सम्पदा । (१)आचार सम्पदा- चारित्रकी दृढता को आचार सम्पदा कहते हैं। इस के चार भेद हैं-(क) संयम क्रियाओं में ध्रुवयोगयुक्त होना अर्थात् संयम की सभी क्रियाओं में मन वचन और कायाको स्थिरतापूर्वक लगाना । (ख)गणी की उपाधि मिलने पर अथवा संयम क्रियाओं में प्रधानता के कारण कभी गर्वन करना। सदा विनीतभाव से रहना । (ग) अप्रतिबद्धविहार अर्थात् हमेशा विहार करते रहना । चौमासे के अतिरिक्त कहीं अधिक दिन न ठहरना । एक जगह अधिक दिन ठहरने से संयम में शिथिलता आजाती है । (घ) अपना स्वभाव बड़े बूढ़े व्यक्तियों सारखना अर्थात् कम उमर होने पर भी चश्चलतान करना। गम्भीर विचार तथा दृढ स्वभाव रखना। (२) श्रुतसम्पदा- श्रुत ज्ञान ही श्रुतसम्पदा है । अर्थात् गणी को बहुत शास्त्रों का ज्ञान होना चाहिए । इसके चार भेद हैं(क) बहुश्रुत अर्थात् जिसने सब सूत्रों में से मुख्य मुख्य शास्त्रों का अध्ययन किया हो, उनमें आए हुए पदार्थों को भलीभाँति जान लिया हो और उनका प्रचार करने में समर्थ हो। (ख) परिचितश्रुत- जो सब शास्त्रों को जानता हो या सभी शास्त्र जिसे अपने नाम की तरह याद हों। जिसका उच्चारण शुद्ध हो और जोशास्त्रों के स्वाध्याय का अभ्यासी हो । (ग) विचित्रश्रुतअपने और दूसरे मतों को जानकर जिसने अपने शास्त्रीयज्ञान
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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