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________________ श्री सेठिया जैन अन्धमाला ___................. देखने लगा। इसी समय रेवती गाथापत्रीकामोन्मत्त होकर पौषध शाला में आई और महाशतक श्रावक को कामभोगों के लिए ' आमन्त्रित करने लगी । उसके दो तीन बार ऐसा कहने पर महाशतक श्रावक को क्रोध आगया। अवधिज्ञान से उपयोग लगा। कर उसने रेवती से कहा कि तू सात रात्रि के भीतर भीतर अलस (विचिका) रोग से पीड़ित हो कर आर्तध्यान करती ''हुई असमाधिमरण पूर्वक यथासमय काल करके रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे लोलुयच्युत नरक में ८४ हजार वर्ष की स्थिति से उत्पन्न होगी। .. महाशतक श्रावक के इस कथन को सुन कर रेवती विचारने लगी कि महाशतक अब मुझ पर कुपित हो गया है और मेरा बुरा चाहता है। न जाने यह मुझे किस बुरी मौत से मरवा डालेगा। ऐसा सोच कर वह डरी । नब्ध और भयभीत होती ई हुई धीरे धीरे पीछे हट कर वह पौषधशाला से बाहर निकली। ". घर आकर उदासीन हो वह सोच में पड़ गई। तत्पश्चात् रेवती के शरीर में भयङ्कर अलस रोग उत्पन्न हुआ और तीव्र वेदना 'प्रकट हुई। आर्तध्यान करती हुई यथासमय काल करके रखपमा ' पृथ्वी के लोलुयच्युत नरक में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति - वाले नैरयिकों में उत्पन्न हुई। . ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी • राजगृह नगर में पधारे । भगवान् अपने ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी से कहने लगे कि राजगृह नगर में मेरा शिष्य महाशतक . श्रावक पौषधशाला में संलेखना कर बैठा हुआ है। उसने रेवती से सत्य किन्तु अपिय वचन कहे हैं । भक्त पान का पञ्चक्रवाण कर मारणांतिकी संलेखना करने वाले श्रावक को जो बात सत्य (तथ्य) हो किन्तु दूसरे को अनिष्ट, अकान्त, अमिय लगे ऐसा वचन बोलना नहीं कल्पता। अतःतुम जाओ और महाशतक
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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