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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३२७ दण्ड प्रायश्चित्त लेने के लिए कहा । तदनुसार दण्ड प्रायश्चित्त लेकर सदालपुत्र श्रावक ने अपनी आत्मा को शुद्ध किया। ___ सद्दालपुत्र अन्तिम समय संलेखना द्वारा समाधि मरण पूर्वक काल करके सौधर्म देवलोक के अरुणभूत विमान में उत्पन्न हुआ। चार पल्योपम की स्थिति पूर्ण करके महाविदेहं क्षेत्र में जन्म लेगा .: और वहीं से उसी भव में मोक्ष जायगा। ... (८) महाशतक श्रावक- राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसी नगर में महाशतक नाम का एक गाथापति रहता था। वह नगर में मान्य एवं प्रतिष्ठित था। कांसी के बर्तन विशेष से नापे हुए आठ करोड़ सोनये उसके खजाने में · थे, आठ करोड़ व्यापार में लगे हुए थे और आठ करोड़ घर . विस्तार आदि में लगे हुए थे । गायों के आठ गोकुल थे। उस - के रेवती आदि तेरह सुन्दर स्त्रियाँ थीं। रेवती के पास उसके पीहर से दिये हुए आठ करोड़ सोनये और गायों के पाठ गोकुल थे। शेष बारह स्त्रियों के पास उनके पीहर से दिए हुए एक एक करोड़ सोनये और एक एक गोकुल था। एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । आनन्द श्रावक की तरह महाशतक ने भी श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किये । कांसी के बर्तन से नापे हुए चौवीस करोड़ .. सोनये और गायों के पाठ गोकुल (अस्सी हजार गायों) की मर्यादा की। रेवती आदि तेरह स्त्रियों के सिवाय अन्य स्त्रियों से मैथुन का त्याग किया। इसने ऐसा भी अभिग्रह लिया कि : प्रति दिन दो द्रोण (६४ सेर) वाली सोने से भरी हुई कांसे की पात्री से व्यवहार करूँगा, इस से अधिक नहीं । श्रावक के व्रत - अङ्गीकार कर महाशतक श्रावक धर्मध्यान से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ रहने लगा।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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