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________________ श्री सेठिया जैन प्रथमाला, श्रावक की बात सुन कर गोशालक उसकी दुकानों से पीठ फलक आदि लेकर विचरने लगा। जब गोशालक हेतु और युक्तियों से, प्रतिबोधक वाक्यों से और अनुनय विनय से सद्दालपुत्र श्रावक को निर्ग्रन्थ प्रवचनों से चलाने में समर्थ नहीं हुआ तब श्रान्त, उदास और ग्लान (निराश ) होकर पोलासपुर नगर से निकल कर अन्यत्र विचरने लगा। व्रत, नियम, पौषधोपवास आदि का सम्यक् पालन करते हुए सहालपुत्र को चौदह वर्ष बीत गये। पन्द्रहवां वर्ष जब चल रहा था तब एक समय सहालपुत्र पौषध करके पौषधशाला में धर्मध्यान कर रहा था। अर्द्ध रात्रि के समय उसके सामने एक देव प्रकट हुआ । चुलनीपिता श्रावक की तरह सद्दालपुत्र को भी उपसर्ग दिये । उसके तीनों पुत्रों की बात कर उनके नौ नौ टुकड़े किए और उनके खून और मांस से सदालपुत्र के शरीर को सींचा । इतना होने पर भी जब सदालपुत्र निर्भय बना रहा तब देव ने चौथी वक्त कहा कि यदि तू अपने व्रत नियम आदि को नहीं तोड़ेगा तो मैं तेरी धर्मसहायिका (धर्म में सहायता देने वाली) धर्म वैद्य (धर्म को सुरक्षित रखने वाली), धर्म के अनुराग में रंगी हुई, तेरे सुख दुःख में समान सहायता देने वाली अनिमित्रा भार्या को तेरे घर से लाकर तेरे सामने उसकी घात कर उसके खून और मांस से तेरे शरीर को सींगूंगा। देव के दो बार तीन बार यही बात कहने पर सद्दालपुत्र श्रावक के मन में विचार आया कि यह कोई अनार्य पुरुष है। इसे पकड़ लेना ही अच्छा है। पकड़ने के लिए ज्यों ही सदालपुत्र उठा त्यों ही देव तो आकाश में भाग गया और उसके हाथ में खम्भा आगया। उसका कोलाहल सुन उसकी अग्निमित्रा भार्या . वहाँ आई और सारावृत्तान्त सुन कर उसने सद्दालपुत्र श्रावक से
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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